भागवत कथा के तीसरे दिन वामन अवतार कथा का श्रवण व मंचन देख अभिभूत हुए श्रद्धालु ..

ध्रुव कथा के साथ-साथ वामन भगवान के अवतार के बारे में भी बताया. इस दौरान  वामन अवतार का सुंदर मंचन भी किया गया, जिसको देखकर भक्त अभिभूत हुए हो उठे. अपनी कथा के दौरान उन्होंने बताया कि एक बार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. पराजित इंद्र की दयनीय स्थिति को देखकर उनकी मां अदिति बहुत दुखी हुईं. उन्होंने अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु की आराधना की. 








- पांडेय पट्टी में आयोजित है सात दिवसीय भागवत कथा ज्ञान यज्ञ
- आचार्य उमेश भाई ओझा के द्वारा किया जा रहा प्रवचन
 
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: पांडेय पट्टी में चल रहे भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सात दिवसीय आयोजन के दौरान तीसरे दिन की कथा में आचार्य  उमेश भाई ओझा ने ध्रुव कथा के साथ-साथ वामन भगवान के अवतार के बारे में भी बताया. इस दौरान  वामन अवतार का सुंदर मंचन भी किया गया, जिसको देखकर भक्त अभिभूत हुए हो उठे. अपनी कथा के दौरान उन्होंने बताया कि एक बार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. पराजित इंद्र की दयनीय स्थिति को देखकर उनकी मां अदिति बहुत दुखी हुईं. उन्होंने अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु की आराधना की. 
 

इससे प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट होकर बोले- देवी! चिंता मत करो. मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उसका खोया राज्य दिलाऊंगा. समय आने पर उन्होंने अदिति के गर्भ से वामन के रूप में अवतार लिया. उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे.



एक दिन उन्हें पता चला कि राजा बलि स्वर्ग पर स्थायी अधिकार जमाने के लिए अश्वमेध यज्ञ करा रहा है. यह जानकर वामन वहां पहुंचे. उनके तेज से यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी. बलि ने उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया और अंत में उनसे भेंट मांगने के लिए कहा.
 
इस पर वामन चुप रहे लेकिन, जब बलि उनके पीछे पड़ गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में मांगी. बलि ने उनसे और अधिक मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन अपनी बात पर अड़े रहे. इस पर बलि ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया. संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और वे वामन से विराट हो गए.
 
उन्होंने एक पग से पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया. तीसरे पग के लिए बलि ने अपना मस्तक आगे कर दिया. वह बोला- प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है. तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दें. सब कुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन प्रसन्न हो गए. उन्होंने ऐसा ही किया और बाद में उसे पाताल का अधिपति बना दिया और देवताओं को उनके भय से मुक्ति दिलाई.











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