महामारी को लूट-खसोट का अवसर मान बैठे स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, जमकर कर रहे दोहन ..

एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था. वहां 1 दिन के लिए उनसे बतौर रूम रेंट 14 हज़ार रुपये लिए जा रहे थे. तीन-चार दिन रखने के बाद अस्पताल के संचालकों के अनुशंसा पर पटना में एक दूसरे निजी अस्पताल में भेजा गया जहां अब 45 हज़ार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से उनसे रूम रेंट लिया जा रहा है.




- डेढ़ गुना अधिक किराया वसूल कर रहे निजी एंबुलेंस संचालक
- आसानी से नहीं मिल पा रही सरकारी एंबुलेंस की सेवा
- निजी अस्पतालों की भी मिली है लूट की खुली छूट


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: 

दृश्य-1

खांसी और सांस लेने में परेशानी होने पर बाइपास रोड निवासी एक व्यक्ति द्वारा वाराणसी जाने के लिए एक मेडिकल हॉल संचालक के द्वारा संचालित की जा रही एंबुलेंस सेवा को फोन किया गया. आमतौर पर जहां वाराणसी जाने के लिए एंबुलेंस के द्वारा अधिकतम साढ़े तीन हज़ार रुपये किराया लिया जाता है वहीं, कोरोना काल का हवाला देते हुए 6 हज़ार रुपये की मांग की गई. काफी मान-मनौव्वल के बाद भी जब बात नहीं बनी तो दूसरे निजी एम्बुलेंस चालक से बात की गई. उन्होंने भी परिस्थितियों का हवाला देते हुए कम से कम 5 हज़ार रुपये किराया देने की बात कही.

दृश्य - 2

इटाढ़ी प्रखंड के उनवास के रहने वाली रेणु देवी को सांस लेने में तकलीफ होने पर कोविड जाँच करायी गयी. रिपोर्ट निगेटिव आयी हालांकि, जिले में किसी भी अस्पताल के द्वारा एडमिट नहीं करने पर परिजनों के द्वारा पटना ले जाने के लिए 102 एंबुलेंस सेवा पर फोन किया गया जहां से यह बताया गया कि चालक वाहन लेकर अभी डुमरांव की तरफ हैं आने में डेढ़ घंटे लगेंगे. आखिरकार डेढ़ घंटे भी बीत गए और एम्बुलेंस के बिना उन्हें निजी वाहन का सहारा लेना पड़ा.

कोरोना संक्रमण काल में एंबुलेंस की सेवा कितनी महत्वपूर्ण है यह बताने की जरूरत नहीं लेकिन, संक्रमण के इस दौर में परिस्थितियां कुछ इस तरह बदल गई हैं कि हर कोई इसे अवसर समझकर भुनाने में लगा हुआ है. खास बात तो यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग भी मौके का फायदा उठाने की रणनीति पर चल रहे हैं. एंबुलेंस सेवाओं की पड़ताल की गयी तो ज्ञात हुआ कि सरकारी एंबुलेंस सेवा जहां अपने पुराने ढर्रे पर, "नहीं मिलने वाली" स्थिति में है वहीं जो निजी एंबुलेंस सेवाएं मिल रही हैं उनके लिए जरूरतमंदों को कई गुना अधिक भुगतान करना पड़ रहा है. हालात यह हैं कि मजबूरी में लोग कई गुना अधिक भुगतान कर एंबुलेंस का लाभ ले रहे हैं.




9 एम्बुलेंस ऑफ रोड, मुख्यालय में 6 हैं कार्यरत: 

स्वास्थ्य विभाग के जिला कार्यक्रम समन्वयक जावेद आबिदी बताते हैं कि जिले भर में 22 एंबुलेंस है जिनमें से 9 ऑफ रोड है केवल 15 ही कार्यरत हैं. उनमें से जिला मुख्यालय में 6 सरकारी एंबुलेंस कार्यरत हैं. जिनमें 2 गाड़ियां रेलवे स्टेशन पर हैं वहीं, 1 एक कोविड रेफर के लिए जबकि, 2 एम्बुलेंस कोविड के इमरजेंसी के लिए सुरक्षित रखा गया है. इसके बाद बची 1 एम्बुलेंस कोविड के अलावे अन्य आकस्मिक सेवाओं के लिए लोगों को प्रदान की जा रही हैं.

लेकिन, कुल मिलाकर जो एक एंबुलेंस आम लोगों को कोविड के अतिरिक्त आकस्मिक सेवा देने के लिए बताई जा रही है उसका कोई अता-पता नहीं रहता. दूसरी तरफ यह बताया गया कि जो दो एंबुलेंस इमरजेंसी सेवा के लिए रखी गई हैं, डीपीएम की अनुशंसा पर उन्हें प्राप्त किया जा सकता है हालांकि, डीपीएम से अनुशंसा कराना हर किसी के बस की बात नहीं है.

निजी अस्पतालों के द्वारा भी शुरू है लूट-खसोट:

भोजपुरी आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता नंद कुमार तिवारी ने बताया कि, उनके एक परिचित को सांस लेने में तकलीफ होने पर पुराना अस्पताल रोड स्थित एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था. वहां 1 दिन के लिए उनसे बतौर रूम रेंट 14 हज़ार रुपये लिए जा रहे थे. तीन-चार दिन रखने के बाद अस्पताल के संचालकों के अनुशंसा पर पटना में एक दूसरे निजी अस्पताल में भेजा गया जहां अब 45 हज़ार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से उनसे रूम रेंट लिया जा रहा है.

कहते हैं अधिकारी:

हमारे यहां 22 एंबुलेंस हैं, जिनमें एक्सीडेंट होने के बाद 3 बंद हैं वहीं, 6 अन्य तकनीकी कारणों से बंद हैं. कुल 15 एंबुलेंस कार्यरत हैं, जिनमें 6 जिला मुख्यालय में कार्य कर रही हैं अन्य को विभिन्न पीएससी में चलाया जा रहा है.

जावेद आबेदी,
जिला कार्यक्रम समन्वयक, स्वास्थ्य








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