पूर्व में जहां गंदे नाले सीधे जाकर गंगा में मिलते रहे हैं वहीं, जिले में श्मशान घाट पर मिलने वाली लकड़ियों तथा अंत्येष्टि की अन्य सामग्रियों के कीमत में बेतहाशा वृद्धि के कारण लोग शवों के अंतिम संस्कार का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं. ऐसे में पिछले कुछ महीनों से लोगों में शवों का जल प्रवाह करने की प्रवृत्ति पनपी है.
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों को दिखाया ठेंगा, बिगाड़ी पतित-पावनी की सेहत
- जिलाधिकारी के निर्देश पर शवों के निस्तारण को पहुंचे अंचलाधिकारी
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: शवदाह के महंगे खर्च से बचने के लिए लोगों ने अब एक नई तरकीब निकाली है. वह अपने मृत स्वजनों के शवों का जल प्रवाह कर दे रहे हैं. ऐसा करके भले ही वह महंगे खर्च से छुटकारा पा जा रहे हो लेकिन, इससे एक तरफ जहां जल प्रदूषण हो रहा है वहीं, दूसरी तरफ कई तरह की संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा भी बढ़ जा रहा है. पिछले 1 सप्ताह के अंदर ही चौसा के महादेवा घाट पर दर्जनों लाशों का जल प्रवाह किया गया है. जल-प्रवाह करने के बाद लाशें गंगा के किनारे आकर लग गई हैं. गिद्ध और कुत्ते शवों को नोच-नोच कर अपना आहार बना रहे हैं जिससे कि वहाँ नजारा और भी वीभत्स हो गया है. आश्चर्य की बात तो यह है कि स्थानीय अधिकारियों की तरफ से भी गंदगी को साफ करने को लेकर कोई पहल नहीं की गई है. ऐसे में गंदगी से परेशान हो चुके स्थानीय लोगों ने मीडिया को इस बात की जानकारी दी.
पतित पावनी गंगा को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर कई तरह के नियम बनाए गए हैं लेकिन, उन नियमों का कितना अनुपालन धरातल पर हो रहा है यह देखने के लिए कभी किसी पदाधिकारी ने जहमत नहीं उठाई है. पूर्व में जहां गंदे नाले सीधे जाकर गंगा में मिलते रहे हैं वहीं, जिले में श्मशान घाट पर मिलने वाली लकड़ियों तथा अंत्येष्टि की अन्य सामग्रियों के कीमत में बेतहाशा वृद्धि के कारण लोग शवों के अंतिम संस्कार का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं. ऐसे में पिछले कुछ महीनों से लोगों में शवों का जल प्रवाह करने की प्रवृत्ति पनपी है.
मजदूर नेता सह समाजसेवी अश्विनी कुमार वर्मा बताते हैं कि यहां प्रतिदिन 30 से 40 लोगों का जल प्रवाह किया जा रहा है. विभिन्न इलाकों से लोग यहां पहुंचते हैं और जल प्रवाह करते हैं लेकिन, कोई देखने वाला नहीं है ऐसे में जिला प्रशासन को यह चाहिए कि यहां पर दंडाधिकारी की नियुक्ति करें जिनकी देखरेख में शवों का बेहतर तरीके से शवदाह हो और किसी प्रकार की कोई अवैध वसूली ना हो सके.
चौसा प्रखंड के पवनी गाँव के निवासी अनिल कुमार सिंह कुशवाहा बताते हैं कि चौसा, मिश्रवलिया, कटघरवा समेत दर्जनों गांव के लोग घाट पर शवदाह के लिए आते हैं लेकिन, यहां की स्थिति देखकर अब वह दहशत से भर गए हैं. इतना ही नहीं गंगा नदी के किनारे बसे कई अन्य गांवों के लोग जो गंगा के जल का इस्तेमाल करते हैं वह भी इस स्थिति को देखकर बेहद भयाक्रांत हो गए हैं. निश्चित रूप से इस तरह के स्थिति सामने आने के बाद अब दूसरे तरह की महामारी जन्म लेगी. मजे की बात यह है कि, स्थानीय अंचलाधिकारी से कहने पर भी उन्होंने सफाई को लेकर कोई विशेष पहल नहीं की है.
शवों का निस्तारण कराने पहुंचे अंचलाधिकारी |
इलेक्ट्रिक शवदाह गृह बनने पर होगा फायदा:
वर्तमान में नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा घाटों के सौंदर्यीकरण के लिए करोड़ों रुपयों का खर्च किया जा रहा है। बक्सर में भी 6 घाटों को सुंदर बनाने तथा वहां पर सीढ़ी और रेलिंग आदि लगाने का काम शुरू किया गया है लेकिन, इलेक्ट्रिक शवदाह गृह बनाए जाने की योजना केवल फाइलों में ही है. चौसा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अश्विनी कुमार वर्मा बताते हैं कि, इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की व्यवस्था हो जाने पर इस तरह की स्थिति सामने नहीं आएगी. बेहद मामूली खर्च में लोग शवों का अंतिम संस्कार कर सकेंगे.
कहते हैं जिलाधिकारी:
इस तरह की स्थिति की जानकारी मिली, जिस पर तुरंत ही अंचलाधिकारी को मौके पर भेजा गया है. वह साफ-सफाई के साथ-साथ आगे की कार्रवाई में लगे हुए हैं.
अमन समीर,
जिलाधिकारी
वीडियो:
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