नियमों के विरुद्ध किए गए कार्य को लेकर नप ने मानी गलती, डूब गए जनता के लाखों रुपये ..

डोर टू डोर कचरा उठाव के लिए 6 लाख रुपये उसके द्वारा खर्च किए जाते हैं जबकि, बाकी पैसों का इस्तेमाल कचरे के निस्तारण अथवा पुनर्चक्रण के लिए होता है लेकिन व्यवहारिक तौर पर स्थिति यह है कि कचरे का उठाव तो एनजीओ करती है लेकिन, उसके निस्तारण अथवा पुनर्चक्रण के लिए एनजीओ के द्वारा कोई पहल नहीं की जाती. ऐसे में 30 माह में तकरीबन 48 लाख रुपयों का गलत भुगतान एनजीओ को कर दिया गया है.
काव नदी के गर्भ में बना कचरा पुनर्चक्रण पिट




- कचरा पुनर्चक्रण पिट निर्माण तथा कचरा डंपिंग को लेकर लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष दायर किया गया था परिवाद
- कचरा उठाव करने वाली एजेंसी को बिना काम ही कर दिया गया भुगतान

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: नगर परिषद डुमरांव के द्वारा बगैर नियमों के अनुपालन के तथा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) के द्वारा निर्धारित नियमों की अवहेलना करते हुए काव नदी, महाकाल मंदिर एवं खिरौली तालाब के बगल में कचरा निस्तारण पिट बनाने तथा कचरा डंपिंग किए जाने एवं उसे जलाने को लेकर लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष की गई शिकायत के आलोक में नगर परिषद ने अपनी गलती स्वीकार की है तथा लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष यह जवाब दिया है कि, नदी तथा पोखरे के समीप कचरा पुनर्चक्रण पिट नहीं बनेगा साथ ही साथ डंप किए गए कचरे को भी हटाया जाएगा. नगर परिषद के इस फैसले से एक तरफ जहां पर्यावरण प्रेमियों में खुशी की लहर व्याप्त है वहीं, दूसरी तरफ एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि नगर परिषद के द्वारा अपने इस अव्यवहारिक फैसले के कारण तीन जगहों पर खर्च कचरा पुनर्चक्रण पिट बनाने में खर्च हुई तकरीबन 22.5 लाख रुपये की राशि तथा नियमों की अवहेलना कर किए गए उसके भुगतान लिए कौन जवाबदेह होगा तथा क्या उसकी वसूली जिम्मेदार पदाधिकारियों से होगी?




नदी के गर्भ में तथा पोखर के समीप किया पुनर्चक्रण पिट का निर्माण, डंप हो रहा कचरा:

वार्ड संख्या 19 के पूर्व वार्ड पार्षद तथा लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष परिवाद दायर करने वाले अधिवक्ता सुनील कुमार तिवारी बताते हैं कि, नगर परिषद के द्वारा का नदी के गर्भ में कचरा पुनर्चक्रण पिट बना दिया गया है। इतना ही नहीं महाकाल मंदिर एवं खिरौली तालाब के समीप भी पिट बनना शुरु हो गया. इसके अतिरिक्त वार्ड संख्या 14 में नदी में ही कचरे की डंपिंग कर उसे भरने तथा कचरे को जलाकर वायु प्रदूषण फैलाने का कार्य भी नगर परिषद के द्वारा किया जाता रहा है। इतना ही नहीं काव नदी में ही सामुदायिक शौचालय का भी निर्माण करा दिया गया. ऐसे में सवाल यह उठता है कि इसके लिए किससे नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लिया गया था? 

48 लाख रुपयों  का नहीं मिल रहा हिसाब:

सुनील कुमार तिवारी बताते हैं कि नगर परिषद के द्वारा वर्ष 2019 से ही कचरे के उठाव तथा उसके निस्तारण के लिए एनजीओ के साथ करार किया गया है. जिसमें एनजीओ ने नवंबर 2019 में अपने एग्रीमेंट में लिखित रूप से यह दिया है कि डोर टू डोर कचरा उठाव के लिए 6 लाख रुपये उसके द्वारा खर्च किए जाते हैं जबकि, बाकी पैसों का इस्तेमाल कचरे के निस्तारण अथवा पुनर्चक्रण के लिए होता है लेकिन व्यवहारिक तौर पर स्थिति यह है कि कचरे का उठाव तो एनजीओ करती है लेकिन, उसके निस्तारण अथवा पुनर्चक्रण के लिए एनजीओ के द्वारा कोई पहल नहीं की जाती. ऐसे में 30 माह में तकरीबन 48 लाख रुपयों का गलत भुगतान एनजीओ को कर दिया गया है. इतना ही नहीं एनजीओ द्वारा जल स्रोतों के बगल में कचरे का डंप भी किया जाता है जो कि एनजीटी के आदेशों की खुलेआम अवहेलना है. एनजीओ को हो रहे गलत भुगतान के संदर्भ में नगर परिषद के अधिकारी ने कुछ बोलने से बचते नजर आते हैं.

सामाजिक मंच ने कहा जनता की हुई जीत, लेकिन लड़ाई रहेगी जारी:

सामाजिक मंच के द्वारा लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के द्वारा दिए गए आदेश को जनता की जीत बताया गया है. सामाजिक मंच के प्रदीप शरण विनोद कुमार समेत अन्य सदस्यों ने कहा है कि जनहित से जुड़े मुद्दों के लिए आगे भी लड़ाई जारी रहेगी.

कहते हैं अधिकारी: 
नदी में कचरे के डंपिंग को रोक दिया गया है. साथ ही कचरे का उठाव भी कराया जा रहा है. एनजीओ के द्वारा पूरा कार्य नहीं किए जाने के बावजूद उसको भुगतान की गई अधिक राशि को भी वसूला जाएगा. हालांकि, जल्द ही एनजीओ का एग्रीमेंट भी समाप्त होना है.

मनोज कुमार,
कार्यपालक पदाधिकारी,
नगर परिषद डुमरांव






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