वीडियो: व्यवस्था की बदहाली: ना जीते जी चैन, ना मरने के बाद आराम ..

छतों में आ गई दरारों के माध्यम से पानी चू-चू कर सीधे पोस्टमार्टम हाउस में भर रहा है. ऐसे में पोस्टमार्टम के लिए कक्ष में रखे गए शव पानी में भींगते रहते हैं. इससे ना सिर्फ शवों की दुर्दशा हो जा रही है बल्कि, इस व्यवस्था से त्रस्त कर्मियों के द्वारा भी जैसे-तैसे पोस्टमार्टम किए जाने के कारण उनके बीमार पड़ने तथा विभिन्न कांडों के अनुसंधान पर भी ग्रहण लगने की आशंका बढ़ जाती है.

 





- पोस्टमार्टम हाउस के नाम पर 80 लाख रुपये के खर्च के बावजूद व्यवस्था नारकीय
- अनुसंधान प्रभावित होने की भी बन रही संभावना, सड़ांध और बदबू से परेशान है चिकित्सक


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: हमारे यहां स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली के किस्से भी अक्सर सुनने को मिलते हैं, यहां जीवित व्यक्तियों के इलाज में लापरवाही की बात अक्सर सामने आती रहती है लेकिन, व्यवस्थाओं की बदहाली के शिकार मुर्दे भी हो गए हैं. स्थिति यह है कि अब जिंदा और मुर्दा दोनों इंसाफ मांग रहे हैं. दरअसल, तकरीबन 80 लाख रुपये की लागत से तैयार हुए पोस्टमार्टम हाउस के नए भवन के निर्माण में हुई धांधली का नजारा पहली ही बरसात में देखने को मिल रहा है, जब छतों में आ गई दरारों के माध्यम से पानी चू-चू कर सीधे पोस्टमार्टम हाउस में भर रहा है. ऐसे में पोस्टमार्टम के लिए कक्ष में रखे गए शव पानी में भींगते रहते हैं. इससे ना सिर्फ शवों की दुर्दशा हो जा रही है बल्कि, इस व्यवस्था से त्रस्त कर्मियों के द्वारा भी जैसे-तैसे पोस्टमार्टम किए जाने के कारण उनके बीमार पड़ने तथा विभिन्न कांडों के अनुसंधान पर भी ग्रहण लगने की आशंका बढ़ जाती है.


पोस्टमार्टम कर्मी बताते हैं कि इस बात को लेकर कई बार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से शिकायत की गई लेकिन, अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई ऐसे में जब पोस्टमार्टम करने की आवश्यकता होती है तो पहले कमरे की साफ सफाई करनी होती है, उसके बाद पोस्टमार्टम किया जा सकता है लेकिन, नवनिर्मित भवन की जर्जर हालत को देखकर आशंका भी बनी रहती है कि कहीं भवन धराशाई होकर गिर ना जाए.



पोस्टमार्टम हाउस में कार्यरत टेक्नीशियन शंकर बताते हैं कि तकरीबन 2 वर्ष पूर्व बने इस भवन में पिछले ही वर्ष पोस्टमार्टम हाउस को शिफ्ट किया गया था. इसमें पोस्टमार्टम करने के लिए केवल एक टेबल बनाया गया है, जिस पर रख कर शव का पोस्टमार्टम किया जाता है. बाकी शव कमरे में ही इधर-उधर रखने पड़ते हैं लेकिन, बारिश के दिनों में छतों से टपक रहे पानी से भीग कर शवों की दुर्दशा हो जाती है.

चिकित्सक भी बताते हैं मजबूरी:

पोस्टमार्टम करने के लिए पहुंचे चिकित्सक अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि, पोस्टमार्टम हाउस में छतों से टपक रहा पानी पोस्टमार्टम करने वाले कर्मियों के साथ-साथ चिकित्सकों को भी परेशान करता है. बारिश के मौसम में भींगते हुए पोस्टमार्टम करना पड़ता है. इस संदर्भ में कई बार अधिकारियों को सूचना भी दी गई लेकिन, अब तक इसे दुरुस्त करने के संदर्भ में कोई पहल नहीं की गई है.

कहते हैं सिविल सर्जन:

अगर इस तरह की कुव्यवस्था है तो उसे दिखाकर दुरुस्त कराया जाएगा. भवन निर्माण के ठेकेदार अथवा अधिकारियों से जल्द ही बात की जाएगी.

डॉ. जितेंद्र नाथ
सिविल सर्जन

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