अपने घर मे भुलाए गए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को केंद्रीय मंत्री ने किया नमन, कर दिया एक और वादा ..

22 अप्रैल 94 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उस्ताद के नाम पर पुराना थाना परिसर में खाली पड़ी जमीन पर नगर भवन बनाने की नींव डाली. यह कार्य नगर विकास और नगर परिषद के बीच उलझ कर रह गया और उस्ताद के नाम पर भवन आज तक नहीं बन सका. नेता केवल उस्ताद के नाम का इस्तेमाल अपने चुनावी फायदे के लिए करते हैं और चुनाव जीत जाने के बाद वह फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते.
उस्ताद के पुश्तैनी घर की जमीन पर बने ढांचे पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन करते केंद्रीय मंत्री सह सांसद

 






- पुण्यतिथि के मौके पर उस्ताद के पैतृक घर पहुंच मंत्री ने किया नमन
- कहा, शहीद पार्क में बजेगी उस्ताद के शहनाई की धुन

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अपनी ही धरती पर बेगाने होकर रह गए हैं. आज उनकी पुण्यतिथि पर जहां कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर उन्हें श्रद्धांजलि देने की बात कही जा रही है वहीं, दूसरी तरफ उनकी स्मृतियों को नहीं सहेजे जाने से आज भी उनके चाहने वालों के मन में कहीं न कहीं टीस बनी हुई है. लोगों का कहना है कि एक तरफ जहां वाराणसी में उनके नाम पर संग्रहालय बनाने की बात हो रही है वहीं, दूसरी तरफ उनके जन्मस्थली पर ही इस तरह की कोई पहल नहीं हो रही है. 

शनिवार को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री सह बक्सर सांसद अश्विनी कुमार चौबे डुमराँव पहुंचे तथा उन्होंने उस्ताद के पैतृक आवास बंधन पटवा रोड पहुंच उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की तथा डुमराँव में बने शहीद पार्क में उनके शहनाई की धुन सुबह शाम बढ़ती रहे इसकी व्यवस्था करने की बात कही. उनके पैतृक घर के आसपास में लोगों से बातचीत की तथा उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के सांस्कृतिक योगदान को याद किया.

उस्ताद की वीडियो दिखाकर बच्चों से बात करते केंद्रीय मंत्री





बता दें कि डुमराँव बंधन पटवा रोड के बचई मियां के घर के आंगन में 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्ला खान का जन्म हुआ था. उनके परिवार के लोग अब यहां नहीं रहते. जिस घर में उनका जन्म हुआ, जिला प्रशासन उसको भी नहीं सहेज सका. उस्ताद की बाद की पीढ़ी वाराणसी में बस गए और यहां की घर-जमीन बेच दी. 

बांके बिहारी मंदिर जवां हुई थी धुन: 

उस्ताद का ख्याति की बुनियाद बांके बिहारी लाल मंदिर और डुमराँव राज परिवार की देन है. तब राज परिवार के संरक्षण में बांके बिहारी लाल के मंदिर में पूजन आरती के दरम्यान शहनाई बजाने की परंपरा थी. इस जिम्मेदारी को बचई मियां निभाते थे और इसी मंदिर से उन्होंने अपने पुत्र बिस्मिल्ला खान को यहीं से शहनाई का रियाज़ कराना शुरू किया था. उस समय पिता बचई मियां को क्या पता उनका पुत्र बिस्मिल्ला खान शहनाई के माध्यम से पूरे विश्व को सराबोर कर देगा. बाद में वाराणसी निवासी उनके मामा ने अपने यहां बुला लिया. वहां गंगा की लहरों के साथ शहनाई की धुन से उन्होंने ऐसा परवान चढ़ाया कि सफलता उनके कदम चूमती गई. गंगा जमुनी संस्कृति वाले वाराणसी में शहनाई की रियाज़ के बूते पूरे दुनिया में छा गए. 21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की अवस्था में वाराणसी में ही उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने अपनी अंतिम सांस ली.



पुश्तैनी घर से टूटा नाता

उस्ताद के डुमराँव से जाने के काफी वर्षों बाद तक उनके भाई पचकौड़ी मियां एवं उनके भतीजों ने यहां शहनाई की परंपरा को जीवित रखा. परंतु, धीरे-धीरे यहां कद्रदान घटते गये और बाद में वे लोग भी वाराणसी चले गये. अब तो जिस आंगन में वे खेले, उनके स्वजनों ने उसका भी सौदा कर दिया. मीडिया में यह बात आने के बाद प्रशासन ने जमीन के दाखिल-खारिज पर रोक लगाते हुए वहां उस्ताद की स्मृतियों को सहेजने का कला एवं संस्कृति मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा, लेकिन नतीजा शून्य रहा. 
बंधन पटवा रोड में उस्ताद के घर के समीप लोगों से बातचीत करते अश्विनी चौबे


नहीं बना उस्ताद के नाम पर नगर भवन

विश्वविख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खान के नाम पर प्रस्तावित नगर भवन सह पुस्तकालय का निर्माण राज्य सरकार नहीं करा सकी है. 22 अप्रैल 94 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उस्ताद के नाम पर पुराना थाना परिसर में खाली पड़ी जमीन पर नगर भवन बनाने की नींव डाली. यह कार्य नगर विकास और नगर परिषद के बीच उलझ कर रह गया और उस्ताद के नाम पर भवन आज तक नहीं बन सका. नेता केवल उस्ताद के नाम का इस्तेमाल अपने चुनावी फायदे के लिए करते हैं और चुनाव जीत जाने के बाद वह फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते.





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