जयंती पर विशेष : कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं भगवान चित्रगुप्त, ब्रह्मा के हैं अंश ..

11,000 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद उनकी आंख खुली तब उन्होंने अपने सामने एक श्याम वर्ण के पुरुष को खड़ा देखा और पूछा आप कौन हैं? भगवान चित्रगुप्त ने बोला की मुझे मेरे माता पिता का तो नही पता पर हां मैं आपके भीतर ही गुप्त रूप से था. अब आप ही मेरा नाम कारण कीजिए. 

 






- जानिए भगवान चित्रगुप्त की सम्पूर्ण कथा 
- आराधना से नहीं भोगना पड़ता है नरक, गलतियों को करते हैं क्षमा


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के धर्माधिकारी हैं. इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये. इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया. इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें यमराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था.



यमराज जब 84 लाख योनियों के कार्य को ठीक ढंग से नही कर पा रहे थे क्योंकि देव, दानव, ऋषि सब उनके समान शक्ति के थे जिस कारण यमराज ने ब्रह्मा जी से विनती की और कहा कि मैं यह कार्य करने में असमर्थ हूं कृपया मेरी सहायता करें. ब्रह्मा जी चिंतित हो गए कि इतनी बड़ी सृष्टि को संचालन कौन करेगा? इस चिंता में वो ध्यान में लीन हो गए और 11,000 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद उनकी आंख खुली तब उन्होंने अपने सामने एक श्याम वर्ण के पुरुष को खड़ा देखा और पूछा आप कौन हैं? भगवान चित्रगुप्त ने बोला की मुझे मेरे माता पिता का तो नही पता पर हां मैं आपके भीतर ही गुप्त रूप से था. अब आप ही मेरा नाम कारण कीजिए. 




फिर ब्रह्मा जी बोले आप मेरे काया में गुप्त रूप से विद्यमान हैं और आपके कारण ही मैने ये सृष्टि की रचना की हैं आपका चित्र भी मेरे मस्तिष्क में बना इसलिए आप चित्रगुप्त नाम से जाने जायेंगे और आप मेरे काया से निकले हैं इसलिए आप मुझे अधिक प्रिय हैं और आप मेरे समान शक्ति के मालिक हैं. आपको तीन लोक को संचालन करना हैं और 84 लाख योनियों का लेखा जोखा और उनके जन्म मरण, पुनर्जन्म का हिसाब करके उनको मुक्ति और जीवन देना हैं. ब्रह्मा जी ने भगवान चित्रगुप्त को उज्जैन नगरी में वैदिक यज्ञ संपन्न करवाया और उस यज्ञ से दो कन्या उत्पन हुई जिनसे भगवान चित्रगुप्त का विवाह करवाया गया .उन दोनो कन्या का विवाह के लिए मनु और ऋषि को कन्यादान के लिए चुना गया . जिस कारण लोग उन दोनो कन्याओं को मनु और ऋषि कन्या भी कह देते हैं. उन दोनों कन्याओं से 12 पुत्रों की प्राप्ति हुई, जो कायस्थ नाम से विख्यात हुए.

भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है. ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें. चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है.






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