श्रीकृष्ण और श्रीराम ही हमारे जीवन के आलंबन हैं : आचार्य पीतांबर 'प्रेमेश'

कहा कि कलियुग में श्रीमद्भागवत महापुराण श्रवण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है, क्योंकि कल्पवृक्ष मात्र तीन वस्तु अर्थ, धर्म और काम ही दे सकता है. कल्प वृक्ष हमें मुक्ति और भक्ति नहीं दे सकता है लेकिन, श्रीमद्भागवत तो वह  दिव्य कल्पतरु है जो अर्थ, धर्म, काम के साथ-साथ हमें भक्ति और मुक्ति प्रदान करके हमारे लिए परम पद प्राप्त कराता है. 

 





- किला मैदान चल रही सात दिवसीय भागवत व श्री राम कथा
- कथा के दूसरे दिन वक्ताओं ने  श्रोताओं को कराया भागवत व श्री राम कथा का रसपान

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर :13 से 19 नवम्बर तक किला मैदान के रामलीला मंच पर आयोजित सप्तदिवसीय कथा के दौरान दूसरे दिन रविवार को श्रीराम कथा प्रारंभ होने के पूर्व श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय भागवत प्रवक्ता व प्रख्यात कथा वाचक आचार्य पीताम्बर प्रेमेश जी (बक्सर वाले) ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में श्रीराम और श्रीकृष्ण ऐसे दो चरित्र हैं जिसमें लोक व्यवहार, लोक मर्यादा, लोक रक्षा और लोक के आचार-विचार का मार्गदर्शन सहज ही परिलक्षित होता है. इस आलोक में पुण्यभूमि में सप्तदिवसीय श्रीराम कथा और श्रीमद्भागवत कथा का संयुक्त आयोजन कहीं-न-कहीं हमारे पुण्यकर्मों का ही फल है. 


श्रीधाम वृन्दावन से पधारी सुविख्यात श्रीराम कथावाचिका प्रिया तिवारी तथा आचार्य पीतांबर'प्रेमेश', अपने-अपने मुखारविंद से क्रमश: श्रीराम कथा और श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कराकर समुपस्थित भक्तजनों को आनंदित कर रहे हैं. 


श्रीराम कथा के दूसरे दिन कथावाचिका प्रिया तिवारी ने कहा कि श्रीराम का संपूर्ण चरित्र लोककल्याणकारी है, युगांतरकारी है. बाबा तुलसीदास ने लोकमंगल की कामना करते हुए श्रीराम के चरित्र को ही आदर्श माना. हमारे समकालीन समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनैतिकता, आदर्श विहीनता से मुक्ति केवल श्रीराम के अनुकरण द्वारा ही संभव है. कथा प्रसंग में उन्होंने 'शिव विवाह' के माध्यम से विवाह के विभिन्न पक्षों का सार प्रस्तुत की. इस अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की मनमोहक झांकी देखकर समुपस्थित श्रोता झूम उठे. वहीं श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कराते हुए आचार्य पीतांबर 'प्रेमेश' ने कहा कि कलियुग में श्रीमद्भागवत महापुराण श्रवण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है, क्योंकि कल्पवृक्ष मात्र तीन वस्तु अर्थ, धर्म और काम ही दे सकता है. कल्प वृक्ष हमें मुक्ति और भक्ति नहीं दे सकता है लेकिन, श्रीमद्भागवत तो वह  दिव्य कल्पतरु है जो अर्थ, धर्म, काम के साथ-साथ हमें भक्ति और मुक्ति प्रदान करके हमारे लिए परम पद प्राप्त कराता है. 



उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत केवल पुस्तक नहीं, अपितु साक्षात् श्रीकृष्ण स्वरुप है. इसके एक-एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये हैं. उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से भी बढ़कर है. तभी तो धुन्धकारी जैसे शराबी,  कवाबी, महापापी, प्रेतआत्मा का भी भागवत कथा के रसपान से उद्धार हो जाता है. उन्होंने कहा कि 'भा' से भक्ति, 'ग' से ज्ञान, 'व' से वैराग्य और 'त' त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे, उसे ही हम भागवत कहते हैं. इसके साथ-साथ उन्होंने भागवत के 6 प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार, श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्मादि प्रसंगों का बड़ा ही रोचक वर्णन प्रस्तुत किया.  कुन्ती देवी तो सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती हैं, क्योंकि दुख में ही तो हमारे गोविन्द, हमारे बांकेबिहारी जी का दर्शन होता है. राजा परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हें मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रकट हुए इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन श्रवण कर समुपस्थित भक्तजन भावविभोर हो उठे. कथा के दूसरे दिन भी दीप प्रज्ज्वलन के साथ मंच का उदघाटन सौरभ तिवारी, गिट्टू तिवारी के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. कथा में महंत विद्यासागर जी महाराज, मुख्य यजमान दीनबंधु उपाध्याय, राम उदार  उपाध्याय, आचार्य संजय शास्त्री, आकाश कुमार, हरि ओम, गंगाधर दूबे, आयोजक किशोर दूबे के अतिरिक्त रामलीला समिति के सचिव बैकुण्ठनाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता आदि की भूमिका सराहनीय एवं स्तुत्य रही है.








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