समर्पण भाव से भगवान का हो जाना सच्ची भक्ति : आचार्य

भगवान विष्णु के दरवाजे पर जैसे ही ऋषि पहुंचते हैं, जय-विजय दोनों पार्षदों ने उन्हें अंदर जाने से रोक देते हैं. फिर ऋषि और जय-विजय का संवाद होता है. ऋषि कहते हैं कि वह भगवान विष्णु के परम भक्त हैं और जिस प्रकार भगवान समदर्शी हैं वैसे ही उनके पार्षदों को भी होना चाहिए तथा उन्हें भगवान के दर्शन से नहीं रोकना चाहिए.

 



- सिय-पिय मिलन महोत्सव में बह रही ज्ञान रसधारा
- रासलीला व रामलीला प्रसंग देखकर भाव - विभोर हुए श्रद्धालु

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : जब भगवान की अतिशय कृपा होती है. तब वह जीव कल्याणार्थ प्रकट होते हैं. विषयों में आसक्ति ही मोह है और विषयों में अनासक्ति ही मोक्ष है. रामकथा के प्रभाव से दूर की सोच जीव का मन पवित्र हो जाता है. वह मोक्ष का अधिकारी होता है. भगवान की भक्ति का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि जिस भक्त को भोजन न मिले कोई बात नहीं लेकिन उसे भगवान की कथा अवश्य चाहिए, ऐसे ही भक्त मुक्ति का अधिकारी है. भगवान की शरणागति एक बार सच्चे मन से कर लें तो प्रभु उसे तत्काल अपना लेते हैं. भक्ति के सच्चे स्वरूप की चर्चा करते हुए राघवाचार्यजी महाराज जी ने बताया कि सच्चे मन से पूर्ण समर्पण भाव से भगवान का हो जाना ही भक्ति है. श्रीसीताराम विवाह महोत्सव नया बाजार में सुबह से ही भक्ति का प्रवाह शुरू हुआ जो देर रात तक चला. इस क्रम में सुबह में मंदिर परिसर में घंट की आवाजें गुंजायमान हो गई. इसके साथ ही श्रीकृष्ण लीला एवं रामलीला के साथ ही श्रृंगारी जी के पदगायन का भी आयोजन किया गया. 

सुबह कृष्ण लीला में यह दिखाया जाता है कि किस प्रकार राधा रानी ठाकुर जी से नृत्य सीखने जाती हैं तो उनकी सखियाँ कहती हैं कि देखना कृष्ण तुम्हारा कुछ चुरा ना ले लेकिन, राधा रानी नहीं मानती हैं और वह नृत्य सीखने चली जाती हैं. नृत्य के दौरान ही ठाकुर जी राधा रानी की मुंद्रिका उतार लेते हैं. बाद में किस प्रकार मुंद्रिका ढूंढने को राधा रानी व उनकी सखियां प्रयत्न करती हैं और फिर किस प्रकार ठाकुर जी लीला करते हैं यह देखकर श्रद्धालु भाव विभोर हो जाते हैं. वहीं, रात्रि की रामलीला में जय-विजय लीला प्रसंग एवं  लीला एवं कथा का श्रवण करने के लिए हजारों की संख्या में भक्त श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. भक्ति के भवसागर में श्रद्धालु डुबकी सुबह से शाम तक लगा रहे है. रामायण में जय विजय लीला देखकर गदगद हो गये श्रद्धालु रामायण की लीला का भव्य मंचन भजन से शुरू हुआ जिसे देख श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए. रामायण लीला के दूसरे दिन जय विजय लीला का मार्मिक मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि सनकादिक ऋषि भगवान विष्णु से मिलने के लिए उनके आवास पर पहुंचते हैं. भगवान विष्णु के दरवाजे पर जैसे ही ऋषि पहुंचते हैं, जय-विजय दोनों पार्षदों ने उन्हें अंदर जाने से रोक देते हैं. फिर ऋषि और जय-विजय का संवाद होता है. ऋषि कहते हैं कि वह भगवान विष्णु के परम भक्त हैं और जिस प्रकार भगवान समदर्शी हैं वैसे ही उनके पार्षदों को भी होना चाहिए तथा उन्हें भगवान के दर्शन से नहीं रोकना चाहिए लेकिन, जय-विजय उनकी बात नहीं मानते हैं.







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