जिले की इस जेल में बेगुनाह मासूम भुगत रहे किसी और के गुनाहों की सज़ा ..

ऐसे में समाज में किस तरह से रहना किस तरह से बातचीत करना और व्यवहार करना है यह वह समझ नहीं पाते. बाद में जब वह जेल से बाहर निकलते हैं तो यह समझ ही नहीं पाते की समाज में कैसे सामंजस्य बैठाना है. कुमारी अनुराधा बताती है कि जेल में रह रहे बच्चों के रूप में अपराध की नई पौध का बीजारोपण हो रहा है साफ तौर पर कहा जाए तो जेल में रह रहे बच्चों के रूप में नए अपराधी पैदा हो रहे हैं.

 





- कोरोना काल में हाल महिला मंडल कारागार का 
- क्षमता से अधिक कैदी हैं आवासित, 11 बच्चे भी काट रहे हैं मां के गुनाहों की सज़ा


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : आमतौर पर कहा जाता है कि जो जैसा करेगा वैसा परिणाम उसके सामने आएगा. अधिकांश मामलों में ऐसा होता भी है लेकिन, जिले में कुछ ऐसे मामले भी हैं जिनमें 'खता किसी और की और सजा किसी और को' वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. हम बात कर रहे हैं सिविल लाइन्स स्थित महिला मंडल कारा की जहां सजावार महिला बंदियों के साथ उनके बच्चे भी जेल में बंद हैं. ऐसे में एक तरफ जहां महिलाएं अपने गुनाहों की सजा भुगत रही हैं वहीं, उनके साथ बेगुनाह मासूम भी जेल में रहने को मजबूर हैं. इस मजबूरी में ना सिर्फ वह कुंठा के शिकार हो रहे हैं बल्कि उनका बौद्धिक व सामाजिक विकास भी अवरुद्ध हो रहा है. इतना ही नहीं कारा में क्षमता से अधिक कैदी भी है ऐसे में जब देश स्तर पर कोरोना वायरस के नए स्वरूप ओमिक्रोन का खतरा मंडरा रहा है यहां रह रहे मासूमों के जीवन पर भी संकट बना हुआ है.

वैसे तो जेल प्रशासन यह दावा करता है कि बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए जेल के अंदर व्यवस्था की गई है लेकिन, बच्चों को बेहतर परिवेश मिले इस पर ना तो किसी का ध्यान है और ना ही कोई योजना. मजबूरन मासूम बच्चे भी बेगुनाह होने के बावजूद गुनहगारों के बीच सजा भुगत रहे हैं.

69 के रहने की है क्षमता, 100 हैं आवासित :

कारा प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक महिला मंडल कारा में 69 कैदियों के रखने की क्षमता है लेकिन वहां क्षमता से अधिक कैदी रह रहे हैं. वर्तमान में अभी वहां पर 100 महिला बंदी वर्तमान में आवासित हैं. ऐसे निश्चित रूप से ठंड के समय में कैदियों तथा उनके छोटे-छोटे बच्चों के समक्ष रहने आदि की भी परेशानियां सामने आती होंगी.

जेल में तैयार हो रही अपराध की नई पौध :

क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कुमारी अनुराधा बताती है कि जो बच्चे जेल में रहते हैं उन पर मानसिक रूप से गंभीर प्रभाव पड़ता है. जेल के माहौल व घर के माहौल में उनके लिए कोई अंतर नहीं होता. ऐसे में समाज में किस तरह से रहना किस तरह से बातचीत करना और व्यवहार करना है यह वह समझ नहीं पाते. बाद में जब वह जेल से बाहर निकलते हैं तो यह समझ ही नहीं पाते की समाज में कैसे सामंजस्य बैठाना है. कुमारी अनुराधा बताती है कि जेल में रह रहे बच्चों के रूप में अपराध की नई पौध का बीजारोपण हो रहा है साफ तौर पर कहा जाए तो जेल में रह रहे बच्चों के रूप में नए अपराधी पैदा हो रहे हैं.

बच्चों को मिल रहा केवल अक्षर का ज्ञान, महत्व का नहीं है पता :

नैदानिक मनोवैज्ञानिक कुमारी अनुराधा ने यह भी बताया कि भले ही जेल में बंद कुछ महिला बंदी बच्चों को पढ़ाती हो लेकिन, यह पाठशाला घरेलू पाठशाला की तरह ही है. यहां बच्चे पढ़ाई करते हुए अक्षर का ज्ञान भले ही प्राप्त कर लें लेकिन, उन्हें समाज में उठने-बैठने और रहने के तरीके तथा अन्य संस्कार नहीं प्राप्त हो पाएंगे. उन्हें अक्षर का ज्ञान तो हो जाता है लेकिन, किस अक्षर का कहां प्रयोग करना है और उसका क्या महत्व है इसका ज्ञान नहीं हो मिल पाता.

बच्चों को नजदीकी आंगनबाड़ी से जोड़ने की है योजना :

बाल कल्याण समिति के सदस्य डॉ शशांक शेखर बताते हैं कि जेल में रह रहे छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ उचित पोषण भी मिलना चाहिए. जिसका इंतज़ाम जेल प्रशासन को करना है. ऐसे करने में जेल प्रशासन सक्षम नहीं है तो बच्चों को नजदीकी आंगनबाड़ी केंद्र से जोड़ने के लिए जिला पदाधिकारी को पत्र लिखकर इस बात का अनुरोध कर सकता है लेकिन, हर हाल में बच्चों को उनका हक मिलना चाहिए.

कहती हैं कारा अधीक्षक :

केंद्रीय कारा में वर्तमान में क्षमता से कुछ अधिक महिला बंदी आवासित हैं. उनके साथ कुल 11 बच्चे भी रह रहे हैं। कारा में सज़ावार दो महिला शिक्षिकाएं बच्चों को पढ़ाने का कार्य करती हैं. यहां उनके लिए बेहतर इंतज़ाम किए गए हैं.

शालिनी
कारा अधीक्षक,
महिला व मुक्त कारागार











Post a Comment

0 Comments