600 घरों की नालियां बंद, दर्ज हुई लोक शिकायत ..

काफी प्रयास के बाद उनका एक निजी नंबर प्राप्त हुआ लेकिन, उस पर भी कई बार फोन करने पर भी उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिस राज्य में सुशासन के ढोल पीटे जाते हो वहां अधिकारी जनसमस्याओं के प्रति इस तरह उदासीन क्यों बने हुए हैं? क्या उनके लिए सुशासन केवल कागजों में लिखा एक शब्द भर है?
अतिक्रमण के कारण सड़क पर बह रहा पानी








- सिमरी प्रखंड के काजीपुर पंचायत का है मामला
- सरकारी गड्ढे का हुआ अतिक्रमण तो सामने आई समस्या

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सिमरी प्रखंड के काजीपुर पंचायत के स्थानीय गांव में 600 घरों के लोगों को घरों के गंदे पानी की सही निकास नहीं होने के कारण अब बीमारियों का भय सता रहा है. वहीं अब तो घरों से निकले पानी मे डूब कर लाखों रुपयों की लागत से बनी सड़क भी बर्बाद हो रही है. ऐसे में स्थानीय निवासियों की तरफ से एक ग्रामीण केशव सिंह ने अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी डुमरांव के न्यायालय में एक परिवाद दायर कर इस समस्या से निजात दिलाने की गुहार लगाई है.





अपने आवेदन पत्र में ग्रामीण ने बताया है कि कुछ ग्रामीणों के द्वारा तकरीबन पौने सात कट्ठे के क्षेत्रफल में फैले सरकारी गड्ढे का अतिक्रमण कर लिया गया है .इस गड्ढे में तकरीबन 600 घरों की नालियों का पानी जाता था लेकिन, गड्ढे का अतिक्रमण कर लिए जाने से अब पानी यत्र-तत्र फैल रहा है. जिससे बीमारियों की आशंका बढ़ गई है. साथ ही गांव से होकर गुजरने वाली सिंहपुरा-भोजपुर सड़क भी जलजमाव में डूब गई है, जिससे कि सड़क टूटने की संभावना प्रबल हो गई है. 

ग्रामीणों का कहना है कि कई बार इस बाबत अंचलाधिकारी से शिकायत की गई लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला. अंततः मामला अब अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष ले जाया गया है. मामले में प्रशासन की ओर से हो रही पहल के संदर्भ में जानकारी लेने के लिए डुमराव के अनुमंडल पदाधिकारी कुमार पंकज के मोबाइल पर फोन किया गया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया जिससे कि उनका पक्ष ज्ञात नहीं हो सका वही जन सेवा में तत्पर सिमरी के प्रभारी अंचलाधिकारी कौशल कुमार के सरकारी मोबाइल नंबर पर फोन करने पर मोबाइल नंबर स्विच ऑफ पाया गया. काफी प्रयास के बाद उनका एक निजी नंबर प्राप्त हुआ लेकिन, उस पर भी कई बार फोन करने पर भी उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिस राज्य में सुशासन के ढोल पीटे जाते हो वहां अधिकारी जनसमस्याओं के प्रति इस तरह उदासीन क्यों बने हुए हैं? क्या उनके लिए सुशासन केवल कागजों में लिखा एक शब्द भर है?














 














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