महिला दिवस पर विशेष : साहस को मिला सतत जीविकोपार्जन का रास्ता, परिवार का संबल बनी रीना ..

अब वे अपने परिवार का संबल बन गई हैं लेकिन, इसके लिए इन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. बच्चों समेत भूखा रहना पड़ता था. खेत में काम मिला तो ठीक नहीं तो भूखे रहने की नौबत. गाँव के अत्यंत गरीब परिवार के रूप में इनका चयन सर्वे के आधार पर आकाश जीविका महिला ग्राम संगठन द्वारा सतत जीविकोपार्जन योजना के तहत लाभ देने के लिए अनुशंसित किया गया.



- ब्रह्मपुर प्रखंड की रीमा स्वरोजगार से जुड़ कर रही अपने परिवार का भरण पोषण
- पति की अस्वस्थता के कारण टूटा था दुखों का पहाड़, परिवार चलाना था मुश्किल

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : गाँव की कई महिलाओं ने अपने दम पर अपने परिवार को संबल दिया है. कार्य करने में अक्षम अपने पति की सेवा और बच्चों की देखभाल करते हुए उन्हें तीनों  वक्त का भोजन भी उपलब्ध कराते हुए आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति की राह पर हैं. उन्ही में से एक हैं रीमा देवी का परिवार. रीमा जिले के ब्रह्मपुर प्रखंड अंतर्गत कृष्णाब्रह्म गांव में लालू नट से दस वर्ष पूर्व ब्याही गई थी. पति मानसिक रूप से बीमार हैं. घर में कोई कमाऊँ सदस्य नहीं है. पति -पत्नी के अलावा तीन लड़के एवं एक बेटी से भरा परिवार है लेकिन, पति कि अस्वस्थता के कारण खेतों में मजदूरी कर रीमा किसी तरह तीनो वक्त के लिए भोजन हो पाता था. विवाद और मारपीट आम बात थी. इसका असर परिवार पर भी पड़ता था. रीमा  के पति बाहर हुए विवाद का गुस्सा कभी-कभी बच्चों पर भी उतारते थे. ऐसे में आर्थिक तंगी के कारण भूखे भी सोना पड़ता था लेकिन, अब ऐसा नहीं है. 

दरअसल, रीमा को सतत जीविकोपार्जन योजना से जोड़ा गया. अब वे अपने परिवार का संबल बन गई हैं लेकिन, इसके लिए इन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. बच्चों समेत भूखा रहना पड़ता था. खेत में काम मिला तो ठीक नहीं तो भूखे रहने की नौबत. गाँव के अत्यंत गरीब परिवार के रूप में इनका चयन सर्वे के आधार पर आकाश जीविका महिला ग्राम संगठन द्वारा सतत जीविकोपार्जन योजना के तहत लाभ देने के लिए अनुशंसित किया गया. इसी प्रक्रिया के तहत रीमा को अत्यंत गरीब परिवार और पति के कार्य करने में अक्षमता के आधार पर किया गया. 




रीमा के रूचि के अनुरूप जनवरी 2019 को कपड़ा व्यवसाय के लिए दस हजार रुपये की राशि दी गई. कपड़े की खरीददारी में इन्हें समस्या आ रही थी. घर से कभी दूर बड़े बाज़ार में नहीं गई थी और न ही कभी बड़े स्तर पर कपड़े आदि की खरीददारी की थी. अपनी इस परेशानी को इन्होने अपने ग्राम संगठन में बताया. ग्राम संगठन की प्रशिक्षित खरीददारी समिति ने इन्हें बाज़ार सर्वेक्षण पद्धति पर प्रशिक्षण दिया. खुद इनके साथ जाकर बाज़ार में सामान कि खरीददारी के लिए सर्वेक्षण करना और फिर खरीददारी करना सिखाया.
 
तत्पश्चात रीमा ने थोक भाव में कपड़ों कि खरीददारी की और फेरी लगाकर गाँव-गाँव साड़ी की बिक्री प्रतिदिन वो तीन से चार किलोमीटर पैदल चलकर कपडे बेचने लगी हैं. इसमें उन्हें मुनाफा भी होने लगा है. प्रति माह इन्हें चार से पांच हजार रुपये का मुनाफा हो जाता है. दस हजार रुपये से शुरू हुआ व्यवसाय अब तीस हजार रुपये तक पहुँच गया है. तीनों वक्त का भोजन परिवार को मिल जाता है. इस योजना के तहत मिली राशि से वो जिले के ब्रह्मपुर और बक्सर बाज़ार से कपडे थोक भाव में खरीदती हैं और गाँव-गाँव बेचती हैं. इस कार्य में उन्हें मुनाफा हो रहा है. इन्हें तीन लड़के एवं एक लड़की है. बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाते हैं. अब रीमा ग्राम संगठन से ऋण लेकर एक स्थाई दुकान लेना चाहती हैं. 

जीविकोपार्जन योजना के पदाधिकारी बताते हैं कि रीमा ने कड़ी मेहनत और सतत जीविकोपार्जन योजना की मदद से अपने परिवार का संबल बनी हैं. साथ ही गाँव की उन महिलाओं के लिए मिसाल भी जो अपने घर-परिवार और समाज के लिए कुछ सपने संजोए हुए हैं.




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