सनातन धर्म में है गृहस्थ आश्रम की बड़ी महिमा : आचार्च रणधीर ओझा

बताया कि मानस में ज्ञान और भक्ति को पति पत्नी के रूप में निरूपित किया गया है. ज्ञान और भक्ति की श्रेष्ठता के संदर्भ में विद्वानों के विचारों में व्यापक मतभेद रहा है. जीव के कल्याण के लिए एक पक्ष ज्ञान की महिमा को महत्व देता है तो दूसरा पक्ष यह गौरव भक्ति प्रेम भाव को प्रदान करता है. 








- नया बाजार में आयोजित है नौ दिवसीय रामकथा
- कथा के दौरान आचार्य रणधीर ओझा ने बताया गृहस्थ आश्रम का महत्व


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर के नया बाजार स्थित सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में महंत राजा राम शरण दास जी महाराज के सानिध्य में आयोजित नौ दिवसीय श्री राम कथा के सातवें दिन मामा जी के कृपा पात्र आचार्य रणधीर ओझा ने गृहस्थ आश्रम पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमारे सनातन धर्म में गृहस्थ आश्रम की बड़ी महिमा है. हमारे धर्म शास्त्र एवं भारतीय संस्कृति में इसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की गई है. ऐसे शास्त्रों में चार प्रकार के आश्रमों का उल्लेख है पहला ब्रह्मचर्य दूसरा गृहस्थ तीसरा वानप्रस्थ और चौथा आश्रम न्यास.  

गृहस्थ आश्रम का उद्देश्य केवल सांसारिक भोग को प्राप्त कर अपने जीवन कर व्यर्थ में बिताना नहीं होता है. इस गृहस्थाश्रम के द्वारा हम अपने सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए उस परम पावन परमात्मा को प्राप्त करना होता है. भक्ति के मार्ग में पति-पत्नी जब एक साथ परमात्मा की आराधना करते हैं तो अति आनंद की प्राप्ति होती है और ऐसे पवित्र गृहस्थ आश्रम में परमात्मा भी प्रकट होने के लिए इच्छा जाहिर करते हैं. 




हमारी भारतीय संस्कृति में पत्नी को केवल भोग की सामग्री ना समझ कर वह भक्ति के मार्ग में सहायिका के रूप में देखा जाता है. बशर्ते पति-पत्नी दोनों का गुरु एक हो. मंत्र एक हो साधना पद्धति एक हो. परंतु दुर्भाग्य से आज के इस परिवेश में पति की साधना कुछ और और पत्नी का मंत्र कुछ और है. यही कारण है आज भक्ति मात्र श्रम बनकर रह जाता है. यदि दोनों में एक सूत्रता होगी तो भक्ति मार्ग में जल्दी सफलता मिलेगी.

आचार्य श्री ने आगे बताया कि मानस में ज्ञान और भक्ति को पति पत्नी के रूप में निरूपित किया गया है. ज्ञान और भक्ति की श्रेष्ठता के संदर्भ में विद्वानों के विचारों में व्यापक मतभेद रहा है. जीव के कल्याण के लिए एक पक्ष ज्ञान की महिमा को महत्व देता है तो दूसरा पक्ष यह गौरव भक्ति प्रेम भाव को प्रदान करता है. राम कथा में ज्ञान भक्ति को पति-पत्नी के रूप में चित्रित करने का मूल अभिप्राय दोनों को सामान स्तर पर स्वीकार करना है. अतः दोनों एक-दूसरे के पूरक है. ज्ञान की पूर्णता के लिए भक्ति की आवश्यकता है और भक्ति की पूर्णता ज्ञान पर आश्रित है. दोनों के सम्मेलन से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है. आचार्य श्री ने कहा कि ज्ञान बुद्धि का धर्म है तो भक्ति ह्रदय की भाव अभिव्यक्ति होती है. 


व्यक्ति बुद्धि के द्वारा ईश्वर का ज्ञान प्राप्त कर ले उसके महत्व को जान लें और उसके हृदय में यदि प्राप्ति की अभिलाषा उत्पन्न ना हो तो ईश्वर की प्राप्ति कैसे संभव हो सकती है? ठीक इसी प्रकार व्यक्ति के अंतः करण में ईश्वर की प्राप्ति की आकांक्षा तो उत्पन्न हो किंतु उसकी ज्ञान ना हो ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जा सकता है. तभी ईश्वर उससे दूर ही बना रहेगा. इसलिए यदि हमें ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति करनी है तो पवित्र दांपत्य की आवश्यकता है.  और ऐसे पवित्र गृहस्थ आश्रम में परमात्मा का प्रकटीकरण होता है. 

शास्त्रों का मत है कि चारों आश्रमों में गृहस्थ आश्रम ही उत्तम है और किसी आश्रम में परमात्मा का प्रकटीकरण नहीं होता है यदि परमात्मा भी प्रकट होने की सोचता है तो किसी ना किसी गृहस्थ के घर ही प्रकट होता है. चाहे वह ब्राह्मण क्षत्रिय या अन्य वर्णों का हो.

इस प्रकार हम सब का कर्तव्य है कि अपने गृहस्थाश्रम दांपत्य जीवन को पवित्र एवं मंगलमय बनाएं ताकि हम परमात्मा का प्रकटीकरण कर सकें. अतः गृहस्थ आश्रम सबसे पवित्र आश्रम है.

















 














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