अपने अच्छे कर्मों के बदौलत देवता के समान हो जाते है मनुष्य : जीयर स्वामी

कहा कि मनुष्य का कार्य है, कि वह अपनी मानवता को समझे. जो व्यक्ति अपने बारे में पूरी तरह मनन चितन करते हुए यह समझ ले कि मैं कौन हूं, तो उस व्यक्ति से कभी भी अहित कार्य नहीं हो सकता है. मनुष्य को श्री हरि के चरणों में अपने आप को समर्पित कर देना चाहिए और वेद, शास्त्र, उपनिषद, पुराण सहित सनातन धर्म ग्रंथों में वर्णित आदेशों का पालन करना चाहिए तभी मनुष्य को आत्मिक सुख प्राप्त हो सकता है.







- ठोरी पांडेयपुर में होने वाली महायज्ञ की जायजा लेने पहुंचे परम संत का हुआ स्वागत
- भगवान लक्ष्मी नारायण की जयघोष से गुंजायमान हुआ पूरा इलाका
- चिलचिलाती धूप में हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु भक्तजन ने किया दर्शन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : मनुष्य को सबसे पहले अपने बारे में मनन और चिंतन करना चाहिए, कि मैं कौन हूं, इस धरती पर क्यों आया हूं, क्या करना चाहिए और दूसरों के साथ क्या व्यवहार करना चाहिए?  मनुष्य के जन्म और मृत्यु का कारण सिर्फ और सिर्फ उसका अपना कर्म है. इसलिए मनुष्य को सदैव ही अपने कर्म के प्रति सतर्क रहना चाहिए. यह उक्त बातें शनिवार को प्रखंड क्षेत्र के ठोरी पांडेयपुर गांव में आगामी नवंबर माह में होने वाले रूद्र महायज्ञ की तैयारी का जायजा लेने पहुंचे श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रद्धालु भक्तजनो को संबोधित करते हुए कही. 




उन्होंने कहा कि मनुष्य का कार्य है, कि वह अपनी मानवता को समझे. जो व्यक्ति अपने बारे में पूरी तरह मनन चितन करते हुए यह समझ ले कि मैं कौन हूं, तो उस व्यक्ति से कभी भी अहित कार्य नहीं हो सकता है. मनुष्य को श्री हरि के चरणों में अपने आप को समर्पित कर देना चाहिए और वेद, शास्त्र, उपनिषद, पुराण सहित सनातन धर्म ग्रंथों में वर्णित आदेशों का पालन करना चाहिए तभी मनुष्य को आत्मिक सुख प्राप्त हो सकता है. मनुष्य सुख शांति की चाहत में कई कुकर्म भी कर डालता है, लेकिन उसे दुख के बजाय सुख नहीं मिल पाता.
वर्तमान समय में शिक्षा में बढ़ोतरी तो हुई है, धन संपदा भी बढ़ी है, लेकिन जिस व्यक्ति व परिवार में संस्कार नहीं, वह जीवन पूरी तरह बेकार होता है.


जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जो जितना बड़ा होता है, उसे उतना ही अनुशासन का पालन करना पड़ता है. चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद जीव को मानव योनि में जन्म मिलता है और इतने दुर्लभ जन्म में अगर मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई तो यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है. मानव जीवन में नीति के साथ-साथ नैतिकता की भी बहुत आवश्यकता है. पहले के लोग नीति के साथ-साथ नैतिकता को ही जीवन का आधार मानते थे, लेकिन अब नीति तो है, लेकिन नैतिकता का घोर अभाव दिख रहा है. नीति के साथ-साथ नैतिकता को अपने जीवन में उतारना ही मानव जीवन की असली पहचान है. श्री स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य के जीवन में मनोरथ का अंत नहीं होता बल्कि एक पूरा हुआ नहीं, कि दूसरा मनोरथ खड़ा हो जाता है. बालपन से वृद्धावस्था तक उम्र के हर पड़ाव पर स्नेह और कामनाएं बदलती रहती हैं, लेकिन सुख मृग-तृष्णा बना रहता है. इस दौरान भगवान लक्ष्मी नारायण और जीयर स्वामी जी के जयघोष से पूरा इलाका गुंजायमान हो गया.



















 














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