पितृपक्ष : पूर्वजों के सम्मान की भावना को जागृत रखने का अवसर ..

श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. कहा तो यह भी जाता है कि श्राद्ध से श्रद्धा जीवित रहती है और श्रद्धा को प्रकट करने का जो प्रदर्शन होता है वह श्राद्ध कहलाता है. इसी कृतज्ञता को प्रकट करने की निमित यह श्राद्ध है, जिसके एक पखवारे में हम सभी उनके प्रति सम्मान एवं सद्भाव व्यक्त करते हैं. 




- आज शनिवार से प्रारंभ होकर 25 तारीख की महालया अमावस्या की तिथि के साथ होगा विसर्जन
- जन कल्याण के लिए पूर्वजों की याद में उनके तिथि पर लगाए एक पौधा    

गिरधारी अग्रवाल, बक्सर : पितृपक्ष हमारे परिवार से जुड़ी एक परंपरा है, जिसमें अपने पूर्वजों को याद करने का एक अवसर प्राप्त होता है, जो आज शनिवार से पूर्णिमा श्राद्ध के साथ प्रारंभ हो रहे हैं, पितृपक्ष की प्रतिपदा तिथि कल यानी रविवार को है और इसका विसर्जन भी महालया अमावस्या की तिथि की श्राद्ध के साथ 25 सितम्बर दिन रविवार को होगा. 



मान्यता है कि पितृपक्ष को मनाने से हमारी नई पीढ़ी में सांस्कृतिक सोच के साथ दिवंगत पितरों (पूर्वज) के सम्मान की भावना का जागरण होता है, ...या यूं कहें श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. कहा तो यह भी जाता है कि श्राद्ध से श्रद्धा जीवित रहती है और श्रद्धा को प्रकट करने का जो प्रदर्शन होता है वह श्राद्ध कहलाता है. इसी कृतज्ञता को प्रकट करने की निमित यह श्राद्ध है, जिसके एक पखवारे में हम सभी उनके प्रति सम्मान एवं सद्भाव व्यक्त करते हैं. शिक्षाविद् (प्रो.) त्रिलोकी नाथ पांडेय बताते हैं कि श्राद्ध और तर्पण का मूल आधार अपनी कृतज्ञता और आत्मीयता व सात्विक वृत्तियों को जागृत रखना है और इस भौतिकतावादी युग में इन प्रवृत्तियों को जीवित, जागृत रखना संसार की सुख-शांति के लिए नितांत आवश्यक भी है.
 
पूर्वजों को भी रहता है इस मास का इंतजार :

ज्योतिषाचार्य शंभूनाथ पांडेय बताते हैं कि भारतीय धर्म परंपरा में श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है. इस मास का दिवंगत पूर्वजों को भी बेसब्री से इंतजार रहता है. इस दौरान किए गए कार्य उन्हें संतुष्टि व ऊर्जा प्रदान करते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब पृथ्वी लोक में देवता उत्तर गोल में विचरण करते हैं और दक्षिण गोल भाद्र मास की पूर्णिमा को चंद्रलोक के साथ-साथ पृथ्वी के समीप से गुजरता है तो चंद्रलोक के माध्यम से दक्षिण दिशा में वे अपनी मृत्यु तिथि पर अपने घर के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं. शास्त्र के मतानुसार इस दौरान दिवंगत पूर्वज भी अपना सम्मान पाकर प्रसन्नतापूर्वक नई पीढ़ी को आशीर्वाद देकर चले जाते हैं.

पूर्वजों की याद में उनके नाम से करें पौधारोपण :

पितृपक्ष आरम्भ हो चुके हैं और पितृ प्रयोजनों के निमित लोक कल्याण का प्रयोजन भी होना चाहिए. इसके लिए यही सही मौका है कि जब दिवगंत पूर्वजों की याद में उनके नाम से पौधारोपण किया जाए. क्योंकि, पेड़ भी एक उपयोगी प्राणी के पोषण के समान है. अतः बक्सर टॉप न्यूज़ भी अपने सुधि पाठकों से अपील करता है की वे इस दौरान आम, पीपल, आंवला आदि ऐसे पौधे लगाएं जिससे किसी न किसी रूप में प्राणियों की आवश्यकताएं पूरी हो. तुलसी के पौधे भी अति लाभकारी है.

धार्मिक परंपराओं में पक्षियों को भी महत्त्व : 

हिंदू रीति-रिवाज की धार्मिक परंपराओं में पेड़-पौधे, पशु एवं पक्षियों के महत्व को भी दर्शाया गया है. इन सबों का एकमात्र कारण प्रकृति को संतुलित बनाए रखना है. पितृपक्ष को ही लें तो कौए को पितरों का रूप माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं. अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को भी देने की प्रथा है. 

कौन सा श्राद्ध किस तारीख को है

10 सितम्बर - पूर्णिमा श्राद्ध 
11 सितंबर - प्रतिपदा श्राद्ध
12 सितम्बर  - द्वितीया श्राद्ध
13 सितम्बर - तृतीया श्राद्ध
14 सितम्बर - चतुर्थी श्राद्ध
15 सितम्बर - पंचमी श्राद्ध
16 सितम्बर - षष्ठी श्राद्ध 
17 सितम्बर - सप्तमी श्राद्ध
18 सितम्बर - अष्टमी श्राद्ध
19 सितम्बर - नवमी श्राद्ध
20 सितम्बर - दशमी श्राद्ध
21 सितम्बर - एकादशी श्राद्ध 
22 सितम्बर -  द्वादशी श्राद्ध
23 सितम्बर - त्रयोदशी श्राद्ध
24 सितम्बर - चतुर्दशी श्राद्ध
25 सितम्बर - अमावस्या ( महालया) श्राद्ध















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