जन्म के साथ ही श्रीकृष्ण ने शुरु की लीलाएं, रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए ब्रह्मा ..

रावण घोर अत्याचार करने लगता है. रावण के पुत्रों व पौत्रों की गणना कोई नहीं कर सकता था. एक एक योद्धा जगत को जीतने की क्षमता रखता था. यह देख कर रावण राक्षस दल से गऊ और ब्राह्मणों पर अत्याचार करने का आदेश देता है.

- 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव का तीसरा दिन
- श्री कृष्ण जन्म-नन्द महोत्सव एवं मनु शतरूपा व रावण तपस्या लीला का हुआ मंचन 

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : श्री रामलीला समिति,बक्सर के तत्वावधान में रामलीला मैदान स्थित विशाल मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के तीसरे दिन मंगलवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री श्यामा श्याम रासलीला संस्थान के स्वामी श्री नन्दकिशोर रासाचार्य जी के सफल निर्देशन में दिन में कृष्ण लीला के दौरान 'श्रीकृष्ण जन्म व नन्द महोत्सव'  प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि कंस ने धीरे धीरे देवकी के छह सन्तानों को समाप्त कर दिया. सातवां गर्भ में ही नष्ट हो गया. देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में भगवान श्री कृष्ण का जन्म होता है. वासुदेव उन्हें रात्रि में ही कारागार से उठाकर यमुना पार गोकुल में नन्द-यशोदा के यहाँ छोड़ आते हैं. 

इधर ब्रज मंडल में जब ब्रज वासियों को पता चला की नंद बाबा के घर बच्चे का जन्म हुआ है तो सभी ब्रजवासी अपने-अपने घरों से बधाई सामग्रियां लेकर पहुंचे और खुशियां मनाते हुए बधाई के गीत गाने लगे "नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की". उसी बीच कंस की भेजी हुई उसकी बहन पूतना सुंदर वेश धारण करके ब्रज गोपियों के बीच पहुंच जाती है और समय पाकर श्रीकृष्ण को अपने गोद में उठाकर अपने स्तनों से जहर पान कराने लगती  है. भगवान कृष्ण स्तनपान करते-करते पूतना के प्राणों का भी हरण कर लेते हैं. यह देख सारे ब्रजवासी एकत्र हो जाते हैं, और पूतना के शव को यमुना में प्रवाहित कर देते हैं. इस दृश्य को देख दर्शक श्रीकृष्ण की जयकार करने लगते हैं.

देर रात मंचित रामलीला के दौरान ब्रजवासी कलाकारों द्वारा 'मनु शतरूपा व रावण तपस्या' प्रसंग का मंचन करते हुए दिखाया गया कि महाराज मनु अपने सभा भवन में बैठे होते है तभी उनके मन में विचार उत्पन्न होता है, कि मुझे राज्य करते काफी समय बीत चुका अब अपने पुत्र उत्तानपाद को सिंहासन सौंपकर भगवत भजन व तपस्या में समय व्यतीत करना चाहिए और अपनी महारानी शतरूपा को साथ लेकर नेम सारण क्षेत्र स्थित वन को तपस्या के लिए चल पड़ते हैं. वहां पहुंचकर महाराज मनु और शतरूपा तप करते हैं. उनकी कठोर तप को देख भगवान प्रसन्न होकर महाराज मनु से वरदान मांगने को कहते हैं. महाराज मनु नारायण से उनके सामान पुत्र का वर मांगते हैं. यही महाराज मनु आगे चलकर दशरथ के रूप में और शतरूपा कौशल्या के रूप में जन्म लेते हैं.


इधर दूसरी तरफ दिखाया गया कि रावण और कुंभकरण तपस्या करते हैं उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा देव उन्हें वरदान देते हैं. इधर रावण का विवाह मंदोदरी के साथ होता है. रावण घोर अत्याचार करने लगता है. रावण के पुत्रों व पौत्रों की गणना कोई नहीं कर सकता था. एक एक योद्धा जगत को जीतने की क्षमता रखता था. यह देख कर रावण राक्षस दल से गऊ और ब्राह्मणों पर अत्याचार करने का आदेश देता है. रामलीला मंचन के दौरान रामलीला पंडाल दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था.













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