लोक आस्था का महापर्व : जेल में डेढ़ दर्जन कैदी और सारीमपुर में मुस्लिम भी कर रहे छठ ..

नहाए-खाए के साथ शुरु हुए इस महा अनुष्ठान में व्रतियों ने खरना का प्रसाद बनाकर ग्रहण किया और फिर छठी मैया और भगवान भास्कर की आराधना के महापर्व को प्रारंभ कर दिया. चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है. महिलाएं और पुरुष दोनों ही इस व्रत को करते हैं, जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है. 







- केंद्रीय कारा में गूंज रहे छठ महापर्व के गीत, कारा प्रशासन उपलब्ध करा रहा पूजन सामग्री
- गरीबी-अमीरी और भेदभाव का फर्क मिटा देता है आस्था का महा-अनुष्ठान

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : लोक आस्था के महापर्व छठ का उत्साह चरम पर है. नहाए-खाए के साथ शुरु हुए इस महा अनुष्ठान में व्रतियों ने खरना का प्रसाद बनाकर ग्रहण किया और फिर छठी मैया और भगवान भास्कर की आराधना के महापर्व को प्रारंभ कर दिया. चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है. महिलाएं और पुरुष दोनों ही इस व्रत को करते हैं, जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है. जिले के सभी इलाकों में लोक आस्था के महापर्व की धूम है. हिंदुओं के साथ साथ मुस्लिम परिवार भी इस महापर्व को करते हैं. समाजसेवी हामिद रजा खान ने बताया कि मुस्लिम बहुल सारीमपुर में इस बार भी दस मुस्लिम परिवारों के लोग छठ व्रत कर रहे हैं. दूसरी तरफ केंद्रीय एवं महिला कारागार में भी आस्था के महापर्व को लेकर कैदियों में खासा उत्साह है क्योंकि दोनों जेलों को मिलाकर कुल 17 बंदी छठ का महा अनुष्ठान कर रहे हैं. उनकी इस पूजा में कारा एवं सुधार विभाग के निर्देश पर कारा प्रशासन भी पूरी मदद कर रहा है. केंद्रीय कारा अधीक्षक राजीव कुमार ने बताया कि उनके यहां बबलू मंडल, रामबचन यादव, राकेश पासवान, भुलन डोम, विजय साह, अजय कुमार तथा अजीत शर्मा नामक कैदी छठ पूजा कर रहे हैं. महिला मंडल कारा अधीक्षक कुमारी शालिनी ने बताया कि उनके यहां कुल दस व्रती महिलाएं छठ कर रही हैं. 

केंद्रीय कारा में हुई पोखर की साफ-सफाई, महिला के आरा में बना कृत्रिम पोखर :

सेंट्रल जेल में कैदियों ने चार दिवसीय महा अनुष्ठान की शुरुआत नहाए-खाए के साथ की तथा फिर खरना का प्रसाद बनाया. अस्ताचलगामी तथा उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए केंद्रीय कारा में अवस्थित पोखर के साफ-सफाई की गई है जबकि महिला केंद्रीय कारा में कृत्रिम पोखर बनाया गया है. जिसकी विशेष साज-सज्जा भी की जा रही है. जेल के अंदर ध्वनि विस्तारक यंत्र से सुबह से लेकर शाम तक छठ के गीत गूंज रहे हैं जिससे कि पूरा माहौल छठ मय हो गया है.

फल,सूप, दौरा तथा नवीन वस्त्रों का वितरण :

कारा प्रशासन के द्वारा केंद्रीय कारा तथा महिला मंडल कारा में छठ व्रतियों को कारा प्रशासन के द्वारा पूजन सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है जिसमें फल नारियल, सूप, दौरा तथा नवीन वस्त्रों का वितरण किया जा रहा है इसके अतिरिक्त नहाए-खाए के बाद खरना का प्रसाद बनाने के लिए भी सामग्री की उपलब्धता कारा प्रशासन के द्वारा कराई गई है. अन्य कैदी भी व्रती कैदियों का पूर्ण सहयोग कर पुण्य के भागी बन रहे हैं. भगवान भास्कर की आराधना के इस महापर्व में कैदी स्वयं तथा कारा प्रशासन भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रख रहा है.

श्रद्धा, शुद्धता और सामाजिक सद्भाव का पर्व है छठ : आचार्य 

आचार्य सर्वेश कुमार चतुर्वेदी बताते हैं कि यह व्रत पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है. छठ पूजा की धार्मिक मान्यताएं भी हैं और सामाजिक महत्व भी है. लेकिन इस पर्व की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात भूलकर सभी एक साथ इसे मनाते हैं. उदाहरण के रूप में सारीमपुर के मुस्लिम परिवारों को छठ करते देखा जा सकता है. किसी भी लोक परंपरा में ऐसा नहीं है. सूर्य, जो रोशनी और जीवन के प्रमुख स्रोत हैं और ईश्वर के रूप में जो रोज सुबह दिखाई देते हैं उनकी उपासना की जाती है. इस महापर्व में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाता है. इस पूजा में कोई गलती हो तो तुरंत क्षमा याचना करनी चाहिए वरना तुरंत सजा भी मिल जाती है.

वेद माता का हुएआ था जन्म, भगवान विष्णु की माया स्वरूपा माता करती हैं रक्षा :

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था. प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं. बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं और जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आए. इस मान्यता के तहत ही इस तिथि को षष्ठी देवी का व्रत होने लगा.
 
समाज को एक सूत्र में पिरोने का पर्व : 

समाजवादी नेता, जेपी सेनानी तथा न्यायायय में बतौर लोक अभियोजक कार्यरत नंद गोपाल प्रसाद बताते हैं कि यह पर्व गरीबी-अमीरी, जात-पात का भेदभाव मिटाकर सभी को एक सूत्र में पिरोने का काम करता है. दलित के घर बने सूप और दौरा से हर व्यक्ति अर्घ्य देता है जबकि कुम्हार के यहां बने मिट्टी के बर्तनों में खरना का प्रसाद बनाया जाता है. छठ में अत्यंत शुभ माना जाने वाला महावर डुमरांव के मुस्लिम समुदाय के लोग बनाते हैं. सभी परंपराओं के निर्वहन के बहाने एक दूसरे के साथ खड़े नजर आते हैं. इस पर्व पर एक मात्र प्रत्यक्ष देवता सूर्य का पूजन कर लोक मंगल की कामना की जाती है.









Post a Comment

0 Comments