लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्री राम ने एक बार रावण को संधि करने के लिए राजा बाली के पुत्र अंगद को दूत बनाकर लंका भेजते है, जहां अंगद और रावण का सुंदर संवाद होता है परंतु रावण ने अहंकार के चलते श्रीराम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
- 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव का सोलहवां दिन
- भगवान श्री राम की सेना ने समुद्र पर बनाया पुल
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में रामलीला मैदान स्थित विशाल मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के सोलहवें दिन सोमवार को श्रीधाम वृंदावन सेवा पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री श्यामा श्याम रासलीला संस्थान के स्वामी नन्दकिशोर रासाचार्य के सफल निर्देशन में देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान "विभीषण शरणागत, सेतुबंध रामेश्वरम पूजा और रावण-अंगद संवाद" की लीलाओं का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि विभीषण अपने बड़े भाई रावण से कहता है कि माता सीता को प्रभु श्रीराम को सम्मान के साथ भेज दें और क्षमा मांग लें. इससे रावण क्रोधित होकर भरे दरबार में विभीषण को लात मारकर राज्य से बाहर कर देता है. इसके बाद विभीषण श्रीराम की शरण में चला जाता है. जहाँ श्रीराम उन्हें हृदय से लगाकर लंका पुरी का राज्य देने का वचन देते हैं और समुद्र पार करने की योजना बनाते हैं. भगवान श्रीराम समुद्र की पूजा कर उनसे लंका पर चढ़ाई करने के लिए रास्ते की विनती करते हैं, लेकिन श्रीराम के आग्रह करने पर भी जब समुंदर ने रास्ता नहीं दिया तो उन्होंने अग्निवाण निकालकर समंदर को सुखाने की चेतावनी दी. जिसके बाद राजा समुद्र अवतरित हुए. उन्होंने बताया कि नल व नील नामक बंदर के हाथ से अगर समुद्र में पत्थर डाला जाय तो पत्थर तैरने लगेगा. इनके सहयोग से सेतु निर्माण करें. समुद्र देव के सहमति के पश्चात् श्री राम की सेना समुद्र पर सेतु बनाने में जुट जाती है और कुछ समय पश्चात सेतु निर्माण पूरा हो जाता है भगवान श्रीराम वहां शिवलिंग की स्थापना करते हैं और उनकी पूजा करके अपनी सेना लेकर समुद्र पार करते हैं. इसके बाद लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्री राम ने एक बार रावण को संधि करने के लिए राजा बाली के पुत्र अंगद को दूत बनाकर लंका भेजते है, जहां अंगद और रावण का सुंदर संवाद होता है परंतु रावण ने अहंकार के चलते श्रीराम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इसपर अंगद जी रामादल में लौटकर आते हैं. उक्त प्रंसंग को देखकर दर्शक रोमांचित हो जाते हैं और पंडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गुंज उठता हैं.
इसके पूर्व दिन में कृष्ण लीला के दौरान "अक्रुर आगमन" नामक प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि भगवान कृष्ण ब्रज में 11 वर्षों तक रहने के पश्चात अनेक लीलाएं करते हैं. तब देवताओं ने नारद जी को गोकुल में श्री कृष्ण के पास संदेश पहुंचाने के लिए भेजते हैं और देवताओं को दिया गया वरदान याद करवाते हैं कि आपका अवतार दुष्टों का संहार वह भक्तों को सुख प्रदान करने के लिए हुआ है और अब वह समय आ रहा है. मथुरा में कंस का अत्याचार असहनीय हो चला है इस दुष्ट के विनाश का समय आ चुका है. तब श्री कृष्ण जी नारद जी को कंस के पास मथुरा भेज कर वहां 'धनुष यज्ञ' के मेले का कंस के माध्यम से तैयारी करवाते हैं और कंस अक्रुर जी को गोकुल भेजकर 'धनुष यज्ञ मेले' में श्रीकृष्ण व बलराम दोनों भाईयों को मथुरा बुलाते हैं. अक्रूर जी जो नंद बाबा के संबंध में भाई थे वह मथुरा से रथ लेकर गोकुल आते हैं और इसकी सूचना मार्ग में श्रीकृष्ण को देते हैं. यह बात सुनकर कृष्ण तुरंत तैयार हो जाते हैं और घर पहुंचकर इसकी जानकारी नंद बाबा और यशोदा मैया को देते हैं. सभी उनको मथुरा जाने से मना करते हैं, परंतु श्री कृष्ण पूरे ब्रजमंडल को उदास करते हुए मथुरा चल पड़ते हैं. इस दृश्य को देख दर्शक रोमांचित हो जय श्री कृष्णा का उद्घोष करते हैं.
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