महर्षि विश्वामित्र के आश्रम के पांच कोस में रह रहे ऋषियों से आशीर्वाद लिया था. इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी भोजन स्वरूप ग्रहण किया था. आज दो युग बीत जाने के बाद भी लोग श्रद्धा और भक्ति भाव से उसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.
- त्रेता युग से चली आ रही परंपरा का हुआ निर्वहन
- भक्ति भाव से श्रद्धालुओं ने ग्रहण किया कि चोखा का प्रसाद
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने जिस परंपरा की शुरुआत की थी वह परंपरा आज भी बखूबी निभाई जा रही है. बक्सर में ताड़का, मारीच और सुबाहु जैसे आतंकियों का वध करने के बाद अपने गुरुदेव महर्षि विश्वामित्र के साथ उन्होंने विश्वामित्र आश्रम के पांच कोस में अलग-अलग ऋषि-मुनियों के आश्रम में जाकर उनसे आशीर्वाद लिया था और उनके यहां रात्रि विश्राम करने के साथ ही भोजन भी किया था. उस वक्त उन्होंने जो भी भोजन ऋषि-मुनियों के आश्रम में किया था वही आज भी लोग प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं. इसी परंपरा के तहत अलग-अलग आश्रमों में अलग-अलग भोजन ग्रहण करने के बाद अंतिम दिन चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का भोजन किया.
इस परंपरा के निर्वहन में आम लोगों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों ने भी सहभागिता निभाई. सदर विधायक संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी ने वामन भगवान मंदिर के समीप गंगा के किनारे लिट्टी-चोखा के भोज का आयोजन किया था. जबकि रेडक्रॉस पॉली क्लिनिक में जिला परिषद सदस्य अरविंद प्रताप शाही के द्वारा लिट्टी-चोखा का भोज कराया गया. इसके अतिरिक्त सामाजिक कार्यकर्ता मिथिलेश पाठक के द्वारा भी लिट्टी-चोखा के भोज का आयोजन किया गया था. लिट्टी चोखा भोज में शामिल होने के लिए न सिर्फ बक्सर से बल्कि आरा, कैमूर, पटना तथा बिहार के अलग-अलग हिस्सों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के कई जिलों से भी लोग पहुंचे थे.
अलग-अलग पड़ाव पर अलग-अलग प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा :
उधर व्याघ्रसर पंचकोशी परिक्रमा समिति संयुक्त सचिव सूबेदार पांडेय ने बताया कि सोमवार को यह यात्रा श्री नारद जी की तपोस्थली नदांव पहुंचेगी जहां सत्तू-मूली का प्रसाद ग्रहण करेंगे. मंगलवार को ऋषि भार्गव आश्रम भभुअर में दही चूड़ा, बुधवार को छोटका नुआंव स्थित महर्षि उद्यालक आश्रम में खिचड़ी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा है. पांचवें दिन गुरुवार को यात्रा चरित्रवन में पहुंची जहां लिट्टी चोखा का प्रसाद ग्रहण किया गया.
नेता युग में भगवान श्रीराम ने लिया था ऋषियों का आशीर्वाद :
ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम जब बक्सर पहुंचे थे तो उन्होंने ताड़का का वध किया था और बाद में उन्होंने महर्षि विश्वामित्र के आश्रम के पांच कोस में रह रहे ऋषियों से आशीर्वाद लिया था. इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी भोजन स्वरूप ग्रहण किया था. आज दो युग बीत जाने के बाद भी लोग श्रद्धा और भक्ति भाव से उसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.
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