आत्मा से परमात्मा का मिलन है "सिय-पिय मिलन महोत्सव" : आचार्य इंद्रेश

श्रीमद्भागवत जी के प्रथम श्लोक में कहा गया है कि जो अभिज्ञ है वह अनभिज्ञ नहीं.  जिन्होंने आदिकवि ब्रह्मा जी सहित सभी देवताओं को भी अपनी लीला से मोहित कर रखा है. पंचतत्व जिनके अधीन है. जो पृथ्वी पर अपने सुंदर ज्ञान को प्रस्थापित करने के लिए आए हैं. जो जन्म मरण के बंधन से पूर्णतया मुक्त हैं ऐसे परम सत्य को मैं प्रणाम करता हूं. इन्द्रेश जी ने कहा कि वह परम सत्य श्री ठाकुर जी का नाम ही है. 






- भागवत कथा के दूसरे दिन भागवत रचना कथा की हुई चर्चा
- कथा व्यास ने कहा, ठाकुर जी ही हैं परम सत्य, उनकी कृपा से मिलती है बंधनों से मुक्ति

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : "सिय-पिय मिलन महोत्सव" आत्मा से परमात्मा के मिलन का महोत्सव है. यह कहना है भागवत कथा आचार्य इंद्रेश जी महाराज का. उन्होंने नवधा भक्ति की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान से मिलने के लिए मानव को भक्ति के नौ सोपान चढ़ने पड़ते हैं जिसे नवधा भक्ति कहा गया है. 




इसके पूर्व नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास इन्द्रेश जी महाराज ने भागवत जी के मंगलाचरण एवं नवधा भक्ति की व्याख्या से सबका मन मोह लिया. इन्द्रेश जी ने कहा कि जब सरस्वती नदी के तट पर महर्षि वेदव्यास जी श्रीमद्भागवत की रचना करने के लिए बैठे तो 33 कोटि देवताओं की दृष्टि इसी बात पर लगी थी की वेदव्यास जी किसे प्रथम प्रणाम करते हैं? वेदव्यास जी ने अपनी बुद्धि की पराकाष्ठा दिखाते हुए परम सत्य को प्रणाम किया जिससे की समस्त देवताओं को प्रणाम हो गया और कोई नाराज नहीं हुआ. 


श्रीमद्भागवत जी के प्रथम श्लोक में कहा गया है कि जो अभिज्ञ है वह अनभिज्ञ नहीं.  जिन्होंने आदिकवि ब्रह्मा जी सहित सभी देवताओं को भी अपनी लीला से मोहित कर रखा है. पंचतत्व जिनके अधीन है. जो पृथ्वी पर अपने सुंदर ज्ञान को प्रस्थापित करने के लिए आए हैं. जो जन्म मरण के बंधन से पूर्णतया मुक्त हैं ऐसे परम सत्य को मैं प्रणाम करता हूं. इन्द्रेश जी ने कहा कि वह परम सत्य श्री ठाकुर जी का नाम ही है. 

महोत्सव के दौरान मिथिला के श्री विश्वनाथ शुक्ल श्रृंगारी जी के द्वारा पदगायन किया गया जबकि रात्रि में आश्रम के परिकरो के द्वारा जय विजय प्रसंग का मंचन किया गया.







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