माता-पिता का सम्मान व गुरुओं के आदर से ही हम अपने जीवन में बेहतर मनुष्य साबित हो सकते हैं. वैसे तो आजकल लोग अपने हिसाब से अपना जीवन जी ही रहे हैं. समकालीन परिवेश में प्रायः हम एक-दूसरे को नीचा दिखाने में निरंतर लगे हुए हैं. लेकिन हमें ऐसी प्रवृत्ति का निषेध करते हुए अपने कर्म के लिखे को भोलेनाथ की पूजा करके हटाने का प्रयास करना चाहिए.
- शिव महापुराण कथा का वाचन कर रहे स्वामी प्रेमनारायणाचार्य "पीताम्बर प्रेमेश"
- कहा - माता-पिता, गुरु और श्रेष्ठ जनों का नमन व अनुकरण ही श्रेयस्कर
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : ठोरी पांडेयपुर में चल रहे विशाल रूद्र महायज्ञ सह श्री शिव महापुराण कथा के दौरान व्यास पीठ से स्वामी प्रेमनारायणाचार्य "पीताम्बर प्रेमेश" महाराज शिव भक्ति को जन मानस में प्रतिष्ठित करने के निहितार्थ समुपस्थित भक्त जनों के मन में विभिन्न कथा-प्रसंगों के माध्यम से शिव भक्ति का रस घोल रहे हैं. दूर-दूर से भक्तजन स्वामी जी को सुनने के लिए पधार रहे हैं.
उन्होंने शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन मनुष्य को एक-दूसरे के प्रति प्रेम व सम्मान के भाव को रखने की बात कही. इस दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि माता-पिता का सम्मान व गुरुओं के आदर से ही हम अपने जीवन में बेहतर मनुष्य साबित हो सकते हैं. वैसे तो आजकल लोग अपने हिसाब से अपना जीवन जी ही रहे हैं. समकालीन परिवेश में प्रायः हम एक-दूसरे को नीचा दिखाने में निरंतर लगे हुए हैं. लेकिन हमें ऐसी प्रवृत्ति का निषेध करते हुए अपने कर्म के लिखे को भोलेनाथ की पूजा करके हटाने का प्रयास करना चाहिए न कि एक-दूसरे को नीचा दिखाने और हराने का कार्य करना चाहिए. स्वामी जी ने बताया कि हमें अपने माता-पिता, गुरु और आराध्य के समक्ष सिर झुकाने से हमारी आयु बढ़ती है.
कथाक्रम में नारद मोह प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि मानस पुत्र देवर्षि नारद जब हिमालय पर्वत की एक गुफा में तपस्या में लीन होते हैं, तब देवराज इंद्र को चिंता हुई कि अब उन्हें लोक परलोक के समाचार कौन सुनाएगा. इतना ही नहीं, कहीं अपने तप बल से नारद जी स्वर्गलोक पर कब्जा न कर लें. इस तरह इंद्र ने अपनी अप्सराओं को नारद की तपस्या भंग करने का आदेश दिया. लेकिन अप्सराओं की भाव भंगिमाओं का महर्षि नारद जी पर कोई असर नहीं पड़ा. ऐसे में नारद जी को अभिमान हो गया कि उन्होंने काम पर विजय पा ली है. असल में जिस स्थान पर नारद जी तपस्या कर रहे थे, उसी स्थान पर महादेव ने कामदेव को भस्म किया था और कामदेव की पत्नी द्वारा कामदेव को पुनर्जीवित करने की बात पर कहा था कि जहाँ तक भस्म की राख दिखाई देगी वहां तक कामदेव और कामवाण का असर नहीं होगा. जिस कारण उस स्थान के चारों ओर काम का असर नहीं पड़ सकता था. जब देवर्षि नारद महादेव के पास पहुंच कर अपना बखान करते हैं, तब महादेव हंस कर नारद जी से कहते हैं कि यह बात किसी और को मत बताना. लेकिन अपने चचंल स्वभाव के वशीभूत देवर्षि नारद ने अपना बखान भगवान विष्णु को सुनाया. तब विष्णु ने नारद जी को महादेव द्वारा कामदेव को भस्म करने का वृतांत सुनाया. यह सुनकर नारद जी बहुत लज्जित हुए तथा उनका अभिमान भंग हुआ. इसके साथ ही कथा वाचक ने कुबेर चरित्र, शिव सती विवाह एवं दक्ष यज्ञ में सती के आत्मदाह की कथा का भी विस्तार से वर्णन किया गया.
कथा के बीच-बीच में आचार्य तथा उनके सहयोगी संगीतकारों द्वारा मधुर एवं कर्णप्रिय भजन सुनाए गए और श्रद्धालुओं द्वारा हर-हर महादेव का पवित्र उद्घोष किया गया.
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