बताया कि विपत्ति के समय धैर्यवान व्यक्ति का परम कर्तव्य है कि वह अपने शत्रु से भी मित्रता कर ले. हम जानते हैं कि देवताओं ने ही सर्वप्रथम सागर मंथन का प्रस्ताव रखा था जिसे दैत्यों ने स्वीकार कर लिया. मंथन में सर्वप्रथम जहर निकला, जिसे भोलेनाथ ने अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ हो गए.
- इटाढ़ी के चिमला में चल रही सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत कथा
- शत्रु से भी मित्रता कर लेना धैर्यवान व्यक्ति की है पहचान
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : हमारी वास्तविक शक्ति प्रभु की भक्ति में है. यह संसार एक सरोवर के समान है और हम सब इसी सरोवर के जीव हैं. जब जीव श्रीहरि के चरण कमल का आश्रय ले लेता है तो वे उसे इस संसार सागर से पार कर देते हैं. उसकी नैया डूबती नहीं है, उसे हमारे प्रभु उबार लेते हैं.
इटाढ़ी प्रखंड के चिमला में चल रही सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन व्यास पीठ से पूज्य स्वामी प्रेमाचार्य 'पीताम्बर जी' महाराज ने कहा कि गजेंद्र मोक्ष की कथा केवल कथामात्र नहीं है, अपितु यह आपकी हमारी जीवन कथा है. ग्राह ने गजेंद्र का पांव पकड़ा और जब उसे कोई नहीं बचा पाया तब उसने भगवान की स्तुति की. भगवान आए और सुदर्शन चक्र से ग्राह का मस्तक धड़ से अलग कर दिया. भगवान से पहले ग्राह का उद्धार किया. उन्होंने बताया कि विपत्ति के समय धैर्यवान व्यक्ति का परम कर्तव्य है कि वह अपने शत्रु से भी मित्रता कर ले. हम जानते हैं कि देवताओं ने ही सर्वप्रथम सागर मंथन का प्रस्ताव रखा था जिसे दैत्यों ने स्वीकार कर लिया. मंथन में सर्वप्रथम जहर निकला, जिसे भोलेनाथ ने अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ हो गए.
कथा के चौथे दिन स्वामी जी ने श्री ने भक्ति की महिमा बताते हुए कहा कि भक्ति में ही शक्ति है जो परमात्मा को सेवक बना देती है. सनातन संस्कृति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में जैसा विंब होगा, वैसा ही प्रतिबिंब होगा. कथा क्रम में आज उन्होंने अनेक प्रेरक प्रसंगों पर प्रकाश डालते हुए भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की कथा श्रवण कराकर समुपस्थित भक्तों को निहाल कर दिया. इस अवसर पर भगवान की मनोहर झांकी प्रस्तुत कर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. ''ब्रज में हे रही जय-जयकार… नंद के घर लाला आयो है…, गोविंद मेरो है गोपाल मेरो है… '' जैसे भजनों पर समुपस्थित श्रद्धालुजन आत्मविभोर होकर थिरकते दिखाई दिए.
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