रामचरितमानस के प्रसंग से आचार्य रणधीर ने समझाया विश्वास का महत्व ..

सती को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव जिसे अपना आराध्य देव कहते हैं, वह एक स्त्री के वियोग में साधारण इंसान की तरह रो रहा है. सती ने शिवजी के सामने ये बात कही तो शिव ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है. भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानी और शिवजी की बात पर विश्वास नहीं किया.





- नया बाजार आश्रम में आयोजित है श्री रामचरितमानस की कथा
- बालकांड में शिव और सती के प्रसंग से बताया पति-पत्नी के बीच विश्वास का महत्व


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : नगर के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह आश्रम के महंत राजाराम शरण दास (बाबा जी )के मंगलानुशासन में आयोजित श्री राम कथा के तीसरे दिन मामा जी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने शिव और सती प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए  कहा कि विश्वास हर रिश्ते की जड़ होती है जब पति-पत्नी का एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं तो वैवाहिक जीवन में अशांति होना तय है. इसीलिए पति-पत्नी को एक दूसरे को हर बात बताना चाहिए ताकि दोनों के बीच भरोसा बना रहे. विश्वास का महत्व समझाने के लिए श्रीरामचरित मानस में शिव-सती का एक प्रसंग बताया गया है.
श्रीरामचरित मानस के बालकांड में शिव और सती का एक प्रसंग है. जिसके अनुसार शिव और सती, अगस्त ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए. सती को यह थोड़ा अजीब लगा कि श्रीराम शिव के आराध्य देव हैं. सती का ध्यान कथा में नहीं रहा और वह यह सोचतीं रहीं कि शिव जो तीनों लोकों के स्वामी हैं, वे श्रीराम की कथा सुनने के लिए क्यों आए हैं?


कथा समाप्त हुई और शिव-सती वापस कैलाश पर्वत लौटने लगे. उस समय रावण ने सीता का हरण किया था और श्रीराम, सीता की खोज में भटक रहे थे. सती को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव जिसे अपना आराध्य देव कहते हैं, वह एक स्त्री के वियोग में साधारण इंसान की तरह रो रहा है. सती ने शिवजी के सामने ये बात कही तो शिव ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है. भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानी और शिवजी की बात पर विश्वास नहीं किया.

सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की बात कही तो शिवजी ने रोका, लेकिन सती पर शिवजी की बात का कोई असर नहीं हुआ. सती, सीता जी का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं. श्रीराम ने सीता के रूप में सती को पहचान लिया और पूछा कि हे माता, आप अकेली इस घने जंगल में क्या कर रही हैं? शिवजी कहां हैं? जब श्रीराम ने सती को पहचान लिया तो वे डर गईं और चुपचाप शिव के पास लौट आईं.

शिवजी ने किया था माता सती का त्याग : 

जब शिव जी ने सती से पूछा की वो कहां गई थीं तो वह कुछ जवाब ना दे सकीं, लेकिन शिव सब समझ गए थे कि जिन श्रीराम को वे अपना आराध्य देव मानते हैं, सती ने उनकी पत्नी का रूप धारण करके उनकी परीक्षा लेकर उनका अनादर किया है. इस कारण शिवजी ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया.-सती भी ये बात समझ गईं और दक्ष के यज्ञ में जाकर आत्मदाह कर लिया. इस प्रसंग से विश्वास के महत्व को समझा जा सकता है. कई बार पत्नियां पति की और पति पत्नी की बात पर विश्वास नहीं करते. इसका नतीजा यह होता है कि रिश्ते में बिखराव आ जाता है.

आचार्य श्री ने आगे श्री राम नाम की महिमा का बखान किया. गोस्वामी जी कहते है कि राम नाम तो ब्रह्मा विष्णु महेशमय है. राम ही सृजन करता है ,राम ही पालन करता हैं. राम सब विकारों से मुक्त कर देते हैं. राम नाम ओंकार स्वरूप में है ! वे निर्गुण और गुण निधान है गुणों का खजाना है और तीनों गुणों से परे भी. तुलसीदास जी कहते हैं कि सिर्फ दो अक्षरों से बनाया शब्द राम भगवान शंकर का महामंत्र है. भगवान शिव से अनुष्ठान पूर्वक दिन रात जपते हैं. इसी नाम के बल से हुए काशी में मरने वालों को मुक्ति का सदाव्रत भागते हैं.
आचार्य श्री ने आगे बताया कि गणेश जी राम नाम का प्रताप जानते थे इसलिए उन्होंने इस नाम को लिखकर इसकी परिक्रमा कर ली तो पूरी दुनिया के लिए प्रथम पूज्य हो गए.

भगवान राम का नाम आदि कवि वाल्मीकि ने उल्टा मरा मरा जप कर भी परम सिद्धि को प्राप्त हो गए. कलयुग में राम नाम ही कई कुमतियों का उद्धार करने में सहज समर्थ है. त्रेता युग में भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ डाला था, लेकिन कलयुग में उनका नाम साधक के अहंकार को तोड़ देता है. भगवान ने शबरी, गिद्ध, सुग्रीव आदि को शरण में रखा. कलयुग में उनका नाम ही गरीबों का निर्वाह कर रहा है.

सतयुग में जब व्यक्ति खूब ध्यान करता था तभी परमात्मा की प्राप्ति होती थी. त्रेता युग में इसके लिए यज्ञ  करना पड़ा था. लेकिन कलयुग में हरि नाम लेने से ही काम हो जाता है. गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं नाम की बडाई कहां तक करूं? अधम से अधम लोगों तक को नाम ने तार दिया. नाम के जाप ने उनका सभी दिशाओं में मंगल किया. जिस नाम का प्रताप विष्णु सहस्त्रनाम यह हजार जॉब के बराबर है उस नाम का विशेष महत्व है.















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