बड़ी ख़बर : जिला उपभोक्ता आयोग ने देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी पर लगाया 50 हज़ार का जुर्माना ..

मृत्यु दावा यह कहते हुए अस्वीकृत कर दिया गया कि उनकी माता की कमाई का कोई जरिया नहीं है. ऐसे में उनकी अधिक उम्र को देखते हुए जानबूझकर यह बीमा पॉलिसी कराई गई थी. साथ ही साथ उनके उम्र का प्रमाण पत्र भी गलत दिया गया है.


 






- गलत आधार पर मृत्यु दावा खारिज करने पर मिली सजा
- वर्ष 2018 में भारतीय जीवन बीमा निगम ने मृत्यु दावा देने से किया था इनकार


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : पिछले दिनों डोसा के साथ सांभर नहीं देने पर जहां नगर के एक रेस्टोरेंट पर जिला उपभोक्ता आयोग के द्वारा 35 सौ रुपये का जुर्माना लगाया गया वहीं अब देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया गया है. इसके साथ ही उपभोक्ता आयोग के द्वारा ग्राहक को दो हज़ार रुपये वाद के खर्च के रूप में देने का आदेश भी सुनाया गया है. खास बात यह है कि 45 दिनों के अंदर यदि इस राशि का भुगतान नहीं किया गया तो एलआइसी को 8 फीसद ब्याज जोड़कर भुगतान करना होगा. 

दरअसल, जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष जुलाई 2018 में एलआइसी के विरुद्ध की गई शिकायत में राजपुर थाना क्षेत्र के जमौली गांव निवासी मनोज कुमार सिंह ने कहा था कि उनकी मां भगमानो देवी की एक बीमा पॉलिसी एलआइसी से खरीदी गई थी दुर्भाग्यवश उनकी माता का निधन बीमा पॉलिसी लेने के 4 माह 15 दिन के बाद ही हो गया. इसके बाद उन्होंने नॉमिनी होने लिहाज से मृत्यु दावा के लिए आवेदन प्रपत्र भारतीय जीवन बीमा निगम की बक्सर शाखा में जमा किया जहां उनका मृत्यु दावा यह कहते हुए अस्वीकृत कर दिया गया कि उनकी माता की कमाई का कोई जरिया नहीं है. ऐसे में उनकी अधिक उम्र को देखते हुए जानबूझकर यह बीमा पॉलिसी कराई गई थी. साथ ही साथ उनके उम्र का प्रमाण पत्र भी गलत दिया गया है. लेकिन आवेदनकर्ता ने यह बताया कि एलआइसी के द्वारा जो प्रस्ताव पत्र भरा गया है उसमें साफ तौर पर व्यवसाय के रूप में पशुपालन दर्ज है. साथ ही साथ उम्र का जो प्रमाण पत्र दिया गया है वह भी गलत साबित करने का कोई आधार भारतीय जीवन बीमा निगम के पास नहीं है. इस प्रकार एलआइसी के आरोप बेबुनियाद हैं. और इन आरोपों के आधार पर भुगतान रोकना सही नहीं है. काफी मशक्कत के बावजूद जब भारतीय जीवन बीमा निगम के द्वारा मृत्यु दावे का भुगतान नहीं किया गया तो आजिज आकर उन्होंने उपभोक्ता न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

उपभोक्ता आयोग ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के पश्चात भारतीय जीवन बीमा निगम की सेवा में त्रुटि पाते हुए बीमा कंपनी को मृत्यु दावे के दो लाख रुपये के अतिरिक्त 50 हज़ार रुपये क्षतिपूर्ति एवं दो हज़ार रुपये वाद खर्च के रूप में 45 दिनों के अंदर पीड़ित को देने का आदेश दिया. साथ ही यह भी कहा कि अगर बीमा कंपनियां ऐसा नहीं कर पाती तो उसे 8 फीसद ब्याज के साथ भुगतान करना होगा.

बीमा कंपनी ने दावा खारिज करने का दिया दूसरा आधार :

बीमा कंपनी के द्वारा पहले जहां उम्र में अंतर और आय नहीं होने के आधार पर बीमा का दावा खारिज करने की बात कही गई थी वहीं, बाद में मामला अपने हाथ से निकलता देख कंपनी ने अब यह कहना शुरू किया कि बीमा धारक महिला पहले से बीमार थी. ऐसे में उनका बीमा कराया गया. लेकिन एलआइसी के अधिवक्ता इस बात का भी कोई प्रमाण आयोग के समक्ष नहीं नहीं दे सके. उधर, उपभोक्ता की तरफ से उसका पक्ष रख रहे अधिवक्ता ने यह बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दावा अस्वीकृति का आधार बार-बार बदला नहीं जा सकता है.

कहते हैं अधिवक्ता :

परिवादी के अधिवक्ता विष्णु दत्त द्विवेदी के मुताबिक विपक्षी द्वारा यह मामला पूर्णत: सेवा में त्रुटि से संबंधित है. बीमा कंपनी गलत आधार पर परिवादी के दावे को निरस्त कर रही थी. ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के प्रति को आयोग के समक्ष रखा गया, जिसमें यह स्पष्ट है कि दावे को निरस्त करने के कारणों को बीमा कंपनी के द्वारा बाद में बदला नहीं जा सकता. मामला काफी चुनौतीपूर्ण था लेकिन आखिरकार न्याय की जीत हो गई.









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