भगवान श्रीकृष्ण के बालसखा सुदामा अपने परिवार को बहुत ही मुश्किलों के साथ जीवन-यापन करते थे लेकिन उन्होंने कभी भी श्री हरि का गुणगान नहीं छोड़ा और श्रीकृष्ण को रटना नही भूलता था भले ही उसको दो समय का भोजन प्राप्त नहीं हुआ हो उसके बाद भी वह प्रभु के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते थे.
- नगर के चरित्रवन मनोकामना सिद्ध मंदिर में जारी है श्रीमद्भागवत कथा
- सातवें दिन के प्रवचन में आचार्य ने बताई मित्रता की परिभाषा
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : नगर के शिक्षक कॉलोनी चरित्रवन मनोकामना सिद्ध महावीर मंदिर के परिसर चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन रविवार को व्यास पीठ से कथा का वाचन करते हुए मामा जी के कृपा पात्र श्री आचार्य रणधीर ओझा जी ने कहा कि भगवान श्री हरि को कोई भी प्राणी समर्पित एवं आत्मियता के साथ स्मरण करके पुकाराता है तो प्रभु उसकी करुण पुकार सुन कर उस प्राणी पर अपनी करुणा की रसधारा बहा देते हैं. आचार्य जी ने व्यास पीठ से कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के बालसखा सुदामा अपने परिवार को बहुत ही मुश्किलों के साथ जीवन-यापन करते थे लेकिन उन्होंने कभी भी श्री हरि का गुणगान नहीं छोड़ा और श्रीकृष्ण को रटना नही भूलता था भले ही उसको दो समय का भोजन प्राप्त नहीं हुआ हो उसके बाद भी वह प्रभु के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते थे. प्रभु की गई भक्ति कभी भी निरर्थक नहीं जा सकती. इसका प्रमाण सुदामा जी हैं जो समर्पित भावों को आत्मसात करते हुए अपने बालसखा श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारकापुरी पहुँच गए और द्वारकाधीश के द्वारपालों ने सुदामा को द्वार पर रोक कर पूछताछ की तो सुदामा ने अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने की बात पर जोर दिया लेकिन दरिद्र एवं दीन हीन व्यक्ति को देखकर द्वारपालों ने श्रीकृष्ण से नहीं मिलने की बात कही जिस पर सुदामा ने द्वारपालों से आग्रह किया कि भाई श्रीकृष्ण को इतना ही कह दो की सुदामा आया है, एक द्वारपाल ने श्रीकृष्ण को संदेश क्या सुनाया त्रिलोकपतिनाथ श्रीकृष्ण नंगे पैरों ही अपने बालसखा से मिलने के लिए दौड़ पड़े और सुदामा को गले लगा कर श्री हरि के नयनों से आंसुओं की धारा बह चली और सुदामा को ससम्मान अपने महल में ले गए. ये होती है सच्ची मित्रता जिन्होने अपने बालसखा को मान-सम्मान दिया. दोनों में निःश्चल भावों की मित्रता का समावेश था.
आचार्य श्री ने व्यास पीठ से कहा कि आधुनिक युग में मित्रता को स्वार्थ के साथ जोड देने की वजह से यह मित्रता अधिक दिनों तक नहीं टिक पाती और एक दूसरे का स्वार्थ पूरा होने के साथ ही मित्रता के भाव खत्म से हो जाते है, आचार्य श्री ने कहा कि मित्रता करनी है तो सुदामा और भागीदारी बन कर मित्रता के धर्म को निभाने के सकारात्कम प्रयास करने चाहिए.
इस मौके पर श्रीकृष्ण सुदामा की बालसखा के मिलन ने उपस्थित श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया. आचार्य श्री ने व्यास पीठ से संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा को बिराजमान करते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत कथा को सुनने से प्राणी के पापों का नाश होता है. मंदिर के प्रधान सेवक जगदानंद दूबे ने बताया कि दूर-दूर से कथा में लोग आ रहे हैं. कथा में मुख्य रूप से नगीना सिंह, छोटक उपाध्याय, राजू पाठक, राजा सिंह, दीपक सिंह, श्रीमन नारायण श्रीवास्तव एवं ऋषिकेश तिवारी आदि का भरपूर सहयोग मिल रहा है.
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