पूर्णाहुति के साथ संपन्न हुआ श्रीलक्ष्मीनारायण महायज्ञ ..

जीव जब मानव का तन प्राप्त करता है और संसार के सुखों का भोग करना प्रारंभ करता है तो वह भोग में इतना मशगूल हो जाता है कि भूल जाता है मैं कौन हूं, कहां से आया हूं? वह विस्मृति हो जाता है कि यहां इसका स्थाई ठिकाना नहीं है यहां से जाना है किंतु मुझे कहां जाना है इस पर वह विचार शून्य हो जाता है और यही मूल कारण है उसके पतन का. 






- सर्वजन कल्याण सेवा समिति के द्वारा आयोजित हुई थी श्रीमद् भागवत कथा
- कथा व्यास कृष्णानंद शास्त्री जी ने कहा - उसका स्वयं से परिचय कराती है भागवत


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : कल्याण सेवा समिति के द्वारा आयोजित 15 वें धर्मायोजन  के तहत रामरेखा घाट स्थित श्री रामेश्वर नाथ मंदिर में श्री लक्ष्मी नारायण यज्ञ एवं श्रीमद्भागवत कथा के आठवें और अंतिम दिन पूर्णाहुति हुई उसके बाद आयोजित सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु नर-नारी शामिल हुए.

कथा व्यास- श्री कृष्णानन्द शास्त्री (पौराणिक जी महाराज) ने कथा के अष्टम दिवस कहा कि,"जीव जगत एवं जगदीश्वर अथवा जीव माया तथा शिव या सेवक, संसार तथा स्वामी इसी त्रिपुटी रहस्य को समझने पर सभी शास्त्रों ने जोर दिया है. इस रहस्य का सही सही ज्ञान हो जाने पर मानव ज्ञानी या भक्त की श्रेणी में आ जाता है. श्रीमद् भागवत के परम श्रोता श्री परीक्षित जी को भगवान श्री कृष्ण की कथा भागवत का प्रवचन श्रवण करते हुए श्री सुखदेव जी ने यही बात बताई कि राजन- मानव मात्र ही नहीं अपितु जीव मात्र ईश्वर का अंश है यही कारण है कि जीव जब मानव का तन प्राप्त करता है और संसार के सुखों का भोग करना प्रारंभ करता है तो वह भोग में इतना मशगूल हो जाता है कि भूल जाता है मैं कौन हूं, कहां से आया हूं? वह विस्मृति हो जाता है कि यहां इसका स्थाई ठिकाना नहीं है यहां से जाना है किंतु मुझे कहां जाना है इस पर वह विचार शून्य हो जाता है और यही मूल कारण है उसके पतन का. पतन यहीं से धीरे-धीरे प्रारंभ हो जाता है.

भागवत कथा मानव को बताती है कि वह ईश्वर का अंश है. ईश्वर कहते हैं कि यह संसार मेरा बनाया हुआ है. न्याय एवं नीति से इतर छल, कपट, प्रपंच और संयंत्र से अर्जित संपत्ति एवं भोगियों का मानव प्रतीक विधि एवं तेज दोनों का हरण कर लेता है. व्यक्ति विवेक शून्य होकर कर्तव्य मूढ़ हो जाएगा तथा पाप-पुण्य के भेद से रहित होकर पाप कर्म को ही पुण्य कर्म समझकर उस कार्य में प्रवृत्त हो जाता. धीरे-धीरे वह पाप एवं पुण्य की भाषा में  पाप की भाषा को ही पुण्य की भाषा मानने लगता है और समझने लगता है यही उसके पतन का मूल कारण होता है. हे  परीक्षित मैं भगवान का दास हूं संपूर्ण संसार भगवान की कृति है सबके स्वामी भगवान है मैं वस्तुओं का उपयोग करने वाला नहीं हूं सबके स्वामी भगवान है. अतः प्रसाद समझकर या आशीर्वाद समझकर जीवन जीने हेतु वस्तु को प्रसाद रूप में ग्रहण कर भगवान की सेवा में तत्पर रहना मेरा परम कर्तव्य एवं जीवन का उद्देश्य तथा चरम लक्ष्य यही है. यही ज्ञान भागवत महापुराण से प्राप्त होता है. 

सर्वजन कल्याण सेवा समिति द्वारा आयोजित इस यज्ञ में 11:30 बजे पूर्णाहुति दिन में 1:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक कथा एवं 5:00 बजे से विशाल भंडारा प्रारंभ हुआ. जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु भक्त शामिल हुए.











Post a Comment

0 Comments