पुस्तक-पुस्तकालयों से दूर होते जा रहे लोग – रामेश्वर प्रसाद वर्मा

कहा कि निबंध लेखन प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, सुलेख प्रतियोगिता, अब किताबों के पन्नों तक सिमट कर अतीत के झरोखों में चला गया है. कविता, कहानी, निबंध, साहित्य से लोगों का नाता टूटता जा रहा है. पहले नियमित रूप से विशेष कर छात्र-छात्राएं पुस्तकालय में देर शाम तक पढ़ते देखे जाते थे. 






- जिले के वरीय अधिवक्ता व साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने हिन्दी की दुर्दशा पर जताया दुःख
- कहा - आज के समय में हिन्दी से दूर हो रही है युवा पीढ़ी

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : 14 सितंबर 1953 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत की थी तब से देवनागरी भाषा का यह पर्व प्रत्येक वर्ष मनाया जाने लगा. इस वर्ष तो हिन्दी दिवस सप्ताह का भी आयोजन किया जा रहा है. समय के साथ वातावरण में बड़ा बदलाव अब देखने को मिल रहा है. समाज में अन्य लोगों को कौन कहे छात्र-छात्राएं भी स्वयं को व्यावसायिक पढ़ाई तक सीमित करते जा रहे हैं. उक्त बातें वरीय अधिवक्ता एवं पत्रकार रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने एक प्रेस नोट जारी  कर बताया. 

उन्होंने कहा कि निबंध लेखन प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, सुलेख प्रतियोगिता, अब किताबों के पन्नों तक सिमट कर अतीत के झरोखों में चला गया है. कविता, कहानी, निबंध, साहित्य से लोगों का नाता टूटता जा रहा है. पहले नियमित रूप से विशेष कर छात्र-छात्राएं पुस्तकालय में देर शाम तक पढ़ते देखे जाते थे. विभिन्न समाचार पत्रों के पठन-पाठन से न सिर्फ ज्ञान में वृद्धि होती थी बल्कि लिखने की शैली और बोलने की क्षमता का विकास भी होता था. आज बहुत कम ही छात्र ऐसे मिलते हैं जो महत्वपूर्ण विषयों पर भी दो शब्द बोलने की क्षमता रखते हो.

श्री वर्मा ने कहा कि यह सच्चाई है कि आज की युवा पीढ़ी प्रतियोगिता संबद्ध पत्रिकाएं अवश्य खरीद लेती है जिनका उद्देश्य सिर्फ परीक्षाओं तक सीमित रहता है. यह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है लेकिन छात्र-छात्राओं को अपनी मातृभाषा के विकास के लिए पहले अपने को साहित्यिक रूप से मजबूत करना होगा तथा इसके लिए  ज्ञानवर्धक पुस्तकों से मित्रता करनी पड़ेगी. 

उन्होंने कहा कि आज भी जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, मुंशी प्रेमचंद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, गोपाल सिंह नेपाली, मनोरंजन प्रसाद सिंह ,रामवृक्ष बेनीपुरी एवं राष्ट्रकवि दिनकर जैसे लेखकों की रचनाओं को  अवश्य पढ़ाना चाहिए जिससे न सिर्फ लोगों के ज्ञान की वृद्धि होगी बल्कि हिंदी भाषा में वाली गिरावट को दूर करने के साथ-साथ एक आदर्श  व्यक्ति बनने की दिशा को मजबूती मिलेगी.








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