हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है कुर्बानी का त्यौहार बकरीद ..

ईद उल अजहा का त्योहार तपस्या और कुर्बानी का सबब देता है. जैसे श्रवण कुमार ने अपने माता पिता के लिए तपस्या की थी. वैसे ही सभी धर्मों में तपस्या अथवा कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व है. भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोग कुर्बानी को सबसे ऊंचा स्थान देते हैं. 




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- इबादतगाहों में सुबह से ही पहुंचते रहे अल्लाह के बंदे
- जिले भर हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा कुर्बानी का त्यौहार

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : "हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जहां धर्म, शास्त्र और मजहब की बात नहीं करते हुए इंसानियत की बात की जाती है. यही वजह है कि यहाँ सभी मिलजुल कर रहते हैं." यह कहना है सामाजिक कार्यकर्ता तथा भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष साबित रोहतासवी का. उन्होंने स्टेशन रोड स्थित मस्जिद में नमाज अता की. इसके बाद उन्हें ना सिर्फ मुस्लिम बल्कि हिंदू धर्मावलंबियों ने भी गले लग कर बधाई दी.

कुर्बानी का त्योहार ईद उल अजहा (बकरीद) जिले में हर्षोल्लास के माहौल में मनाया जा रहा है. अलग-अलग मस्जिदों में सुबह 6:30 से लगातार लोग नमाज अता कर एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं. बक्सर सांसद सुधाकर सिंह तथा सदर विधायक संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी लोगों को त्यौहार की बधाई दी है. प्रसिद्ध शायर व उद्घोषक साबित रोहतासवी ने कहा कि बकरीद तपस्या और कुर्बानी का त्यौहार है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि पूरा हिंदुस्तान एक परिवार है. आस्था अलग-अलग हो सकती है लेकिन मानवता सबसे बड़ी चीज है. 

अल्लाह कुर्बानी पसंद करते हैं जिसे सैक्रिफाइस कहते हैं. ईद उल अजहा का त्योहार तपस्या और कुर्बानी का सबब देता है. जैसे श्रवण कुमार ने अपने माता पिता के लिए तपस्या की थी. वैसे ही सभी धर्मों में तपस्या अथवा कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व है. भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोग कुर्बानी को सबसे ऊंचा स्थान देते हैं. इस देश में श्रवण कुमार जैसे पुत्र हुए जिन्होंने अपने माता-पिता के लिए अपने हितों को कुर्बान किया. साबित खिदमत फाउंडेशन के निदेशक डॉ दिलशाद आलम ने भी इस त्यौहार को प्रेम और भाईचारे के साथ मनाने की बात कही. उन्होंने कहा कि या अल्लाह की राह में कुर्बानी देने वाला त्यौहार है.

बकरीद के मद्देनजर जिले के शहरी और ग्रामीण इलाकों में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं. सदर अनुमंडल पदाधिकारी धीरेंद्र कुमार मिश्र, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी धीरज कुमार, प्रखंड विकास पदाधिकारी रोहित मिश्र, नगर थानाध्यक्ष संजय कुमार सिन्हा तथा तमाम पुलिस बल विभिन्न मस्जिदों तथा विभिन्न चौक चौराहों पर मुस्तैद देखे गए. इसके अतिरिक्त रेडक्रॉस सचिव डॉ श्रवण कुमार तिवारी, समाजसेवी हामिद रज़ा, मुर्शीद रज़ा भी अधिकारियों के साथ मौजूद रहे. जिले के अन्य इलाकों में भी संबंधित प्रखंडों के प्रखंड विकास पदाधिकारी थानाध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारी भी भ्रमणशील देखे गए. बक्सर की जामा मस्जिद के सचिव मो एजाज तथा मदरसा दारुल उलूम अशरफिया के सचिव डॉ निसार अहमद ने बताया कि ईद-उल-अजहा (बकरीद) के मौके पर रविवार को विभिन्न मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए नमाजी इकट्ठा हुए.

डॉ दिलशाद आलम ने बकरीद मनाने की परंपरा के बारे में बताया कि एक बार की बात है जब हजरत इब्राहिम पूरा नाम (हजरत इब्राहिम अलैय सलाम) कोई भी संतान न होने की वजह से बेहद दुखी थे. आखिरकार कई मिन्नतों के बाद अल्लाह की दुआ से उन्हें संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई.

उन्होंने अपने इस बेटे का नाम इस्माइल रखा. हजरत इब्राहिम अपनी इस इकलौती सन्तान से बेहद प्रेम करते थे और एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा.

अब चूंकि पूरे विश्व में हजरत इब्राहिम को सबसे अधिक लगाव, प्रेम अपने पुत्र से ही था. उन्होंने निश्चय किया कि वह अल्लाह के लिए अपने पुत्र की कुर्बानी देने को तैयार होंगे. अतः जब हजरत इब्राहिम अपने पुत्र की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए. जब हजरत इब्राहिम पुत्र की कुर्बानी देने जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक शैतान मिला. जो उन्हें रोकने की कोशिश करता है परंतु हजरत इब्राहिम उस शैतान का सामना करते हुई आगे बढ़ जाते हैं.

जब कुर्बानी का समय आया तो उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली. ताकि पुत्र की मृत्यु को अपनी आंखों से ना देख सके. जैसे ही हजरत इब्राहिम छुरी (चाकू) चलाई और अल्लाह का नाम लिया एक फरिश्ते ने आकर छुरी के सामने इस्माइल के स्थान पर भेड़ की गर्दन को लगा दिया. जिससे भेड़ का सर धड़ से अलग हो गया और इस तरह इस्माइल की जान बच गई.

कहा जाता है कि अल्लाह द्वारा हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने ऐसा किया. परंतु इस परीक्षा में हजरत इब्राहिम सफल हो गए और तभी से कुर्बानी के लिए चौपाया जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.






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