खरहाटांड़ में 45 वर्षों से आयोजित रामलीला के माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर सहेजने की कोशिश

कहा कि रामलीला का आयोजन 1979 से समिति द्वारा किया जा रहा है, और यह परंपरा आज भी जारी है. उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने का कार्य करता है.











- वैदिक मंत्रों उच्चारण के साथ हुआ रामलीला का शुभारंभ
-  रामायण के महत्वपूर्ण दृश्यों का जीवंत मंचन

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : जिले के सिमरी थाना क्षेत्र के खरहाटांड़ गांव में पिछले 45 वर्षों से मॉ दुर्गा पूजा सांस्कृतिक छात्र कला परिषद समिति द्वारा रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. इस वर्ष का आयोजन बीते गुरुवार को मंत्रों के उच्चारण के साथ शुभारंभ हुआ. छात्र कला मंच पर सबसे पहले भगवान विष्णु की आरती की गई, जिसके बाद रामलीला का मंचन प्रारंभ हुआ.

इस बार का पहला दृश्य पितृ भक्त श्रवण कुमार का था, जिसमें वह अपने अंधे माता-पिता को तीर्थाटन के लिए ले जाते हैं. रास्ते में श्रवण को प्यास लगने पर जल लेने जाते हुए दर्शाया गया. उसी समय राजा दशरथ शिकार के लिए जाते हैं. श्रवण जब जलपात्र में जल भर रहे होते हैं, तब दशरथ को लगता है कि कोई हिरण पानी पी रहा है. बिना जानें, वह शब्दभेदी बाण चला देते हैं, जिससे श्रवण की मृत्यु हो जाती है. इस दृश्य को देखकर पंडाल में उपस्थित जनता की आंखें भर आती हैं, और श्रवण के माता-पिता दशरथ को पुत्र वियोग में मरने का श्राप देते हैं.

इसके बाद रामलीला में देव ऋषि नारद का दृश्य प्रस्तुत किया गया, जिसमें वह शीलनिधि की पुत्री विश्व मोहनी के माया चेहरे में फंस जाते हैं. इस घटना के बाद नारद को वानर के रूप में दिखाया जाता है. भगवान विष्णु और द्वारपाल भी देव ऋषि के द्वारा स्थापित किए जाते हैं. रामलीला का यह हिस्सा दर्शकों को काफी प्रभावित करता है.

आगे का दृश्य रावण और मेघनाद के धरती पर बढ़ते अत्याचार को दर्शाता है. रावण को ब्रह्मा से वरदान मिला होता है, जिसके तहत वह देव, दानव, किन्नर आदि को निर्भीक होकर जीत सकता है. अहंकार में चूर रावण, देव ऋषि नारद के उकसाने पर शंभु सहित कैलाश पर्वत उठाने का प्रयास करता है. भगवान शिव उसे दंड देते हैं. रावण ने नर और वानरों को जीतने का वर लेना आवश्यक नहीं समझा, जिसके कारण भगवान श्री विष्णु ने नर के रूप में अवतार लिया.

इस रामलीला को सफलतापूर्वक आयोजित करने वाले डायरेक्टर मृत्युंजय ओझा और मेकअप आर्टिस्ट चुनमुन ओझा के साथ-साथ नारायण ठाकुर समेत कई लोग उपस्थित रहे. समिति के अध्यक्ष संजय ओझा ने कहा कि रामलीला का आयोजन 1979 से समिति द्वारा किया जा रहा है, और यह परंपरा आज भी जारी है. उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने का कार्य करता है.

समिति की इस पहल से ग्रामीण समाज में रामलीला के प्रति उत्साह देखने को मिलता है, और हर वर्ष अधिक संख्या में लोग इस धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होते हैं. इस साल भी दर्शकों की भीड़ ने यह साबित कर दिया कि रामलीला की लोकप्रियता आज भी उतनी ही है.




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