बताते हैं कि जो बच्चे जेल में रहते हैं उन पर मानसिक रूप से गंभीर प्रभाव पड़ता है. जेल के माहौल व घर के माहौल में उनके लिए कोई अंतर नहीं होता. ऐसे में समाज में किस तरह से रहना किस तरह से बातचीत करना और व्यवहार करना है यह वह समझ नहीं पाते.
प्रतीकात्मक तस्वीर |
- 5 बच्चे भी काट रहे हैं मां के गुनाहों की सज़ा
- जेल प्रशासन कर रहा पठन-पाठन की व्यवस्था
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : आमतौर पर कहा जाता है कि जो जैसा करेगा वैसा परिणाम उसके सामने आएगा. अधिकांश मामलों में ऐसा होता भी है लेकिन, जिले में कुछ ऐसे मामले भी हैं जिनमें 'खता किसी और की और सजा किसी और को' वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. हम बात कर रहे हैं सिविल लाइन्स स्थित महिला मंडल कारा की जहां सजावार महिला बंदियों के साथ उनके बच्चे भी जेल में बंद हैं. ऐसे में एक तरफ जहां महिलाएं अपने गुनाहों की सजा भुगत रही हैं वहीं, उनके साथ बेगुनाह मासूम भी जेल में रहने को मजबूर हैं. इस मजबूरी में ना सिर्फ वह कुंठा के शिकार हो रहे हैं बल्कि उनका बौद्धिक व सामाजिक विकास भी अवरुद्ध हो रहा है.
वैसे तो जेल प्रशासन यह दावा करता है कि बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए जेल के अंदर व्यवस्था की गई है लेकिन, बच्चों को बेहतर परिवेश मिले इस पर ना तो किसी का ध्यान है और ना ही कोई योजना. मजबूरन मासूम बच्चे भी बेगुनाह होने के बावजूद गुनहगारों के बीच सजा भुगत रहे हैं.
67 के रहने की है क्षमता, 38 हैं आवासित :
कारा प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक महिला मंडल कारा में 67 कैदियों के रखने की क्षमता है हालांकि सुखद बात है कि यहां केवल 38 महिला बंदी ही वर्तमान में आवासित हैं. ऐसे निश्चित रूप से ठंड के समय में कैदियों तथा उनके छोटे-छोटे बच्चों के समक्ष रहने आदि की भी परेशानियां सामने आती होंगी.
नहीं हो पाएगा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास :
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कीर्ति पांडेय बताते हैं कि जो बच्चे जेल में रहते हैं उन पर मानसिक रूप से गंभीर प्रभाव पड़ता है. जेल के माहौल व घर के माहौल में उनके लिए कोई अंतर नहीं होता. जेल में बच्चों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाएगा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आधार (नींव) जिसमें समाज परिवार, दोस्त, स्कूल इत्यादि होते हैं उनके प्रभाव से बच्चे वंचित रह जाएंगे और उनकी गुणवत्ता से लाभान्वित नहीं हो पाएंगे.
बच्चों को मिल रहा केवल अक्षर का ज्ञान, महत्व का नहीं है पता :
मनोवैज्ञानिक श्री पांडेय ने यह भी बताया कि भले ही जेल में बंद कुछ महिला बंदी बच्चों को पढ़ाती हो लेकिन, यह पाठशाला घरेलू पाठशाला की तरह ही है. यहां बच्चे पढ़ाई करते हुए अक्षर का ज्ञान भले ही प्राप्त कर लें लेकिन, उन्हें समाज में उठने-बैठने और रहने के तरीके तथा अन्य संस्कार नहीं प्राप्त हो पाएंगे. उन्हें अक्षर का ज्ञान तो हो जाता है लेकिन, किस अक्षर का कहां प्रयोग करना है और उसका क्या महत्व है इसका ज्ञान नहीं हो मिल पाता.
बच्चों का पोषण हर हाल में है जरूरी :
बाल कल्याण समिति के पूर्व सदस्य डॉ शशांक शेखर बताते हैं कि जेल में रह रहे 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ उचित पोषण भी मिलना चाहिए. जिसका इंतज़ाम जेल प्रशासन को करना है. ऐसे करने में जेल प्रशासन सक्षम नहीं है तो बच्चों को नजदीकी आंगनबाड़ी केंद्र से जोड़ने के लिए जिला पदाधिकारी को पत्र लिखकर इस बात का अनुरोध कर सकता है लेकिन, हर हाल में बच्चों को उनका हक मिलना चाहिए.
समाज कल्याण विभाग से ऐसे बच्चों के पोषण के लिए राशि भी उपलब्ध कराई जाती है जबकि प्रशासनिक स्तर से इसका उपयोग करने की पहल का प्रयास जरूरी है. साथ ही उन्हें जेल के बाहर भी शिक्षा का अवसर मिले ताकि बच्चों को जेल से अलग माहौल उपलब्ध कराया जा सके.
कहती हैं कारा अधीक्षक :
महिला मंडल कारा में जो महिला बंदी आवासित हैं. उनके साथ पांच बच्चे भी रह रहे हैं. कारा में सज़ावार पढ़ी लिखी महिला बंदी तथा कारा कर्मी बच्चों को को पढ़ाते हैं. यहां उनके लिए बेहतर इंतज़ाम किए गए हैं.
बबिता
कारा अधीक्षक,
महिला मंडल कारागार
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