कहा, "यह भूमि पवित्र है जहां भगवान श्रीराम ने त्रेता युग में पंचकोसी परिक्रमा की थी. उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है उन्होंने इस धरा पर जन्म लिया है. यहां की यात्रा और लोगों से मिलकर एक अनोखी अनुभूति हो रही है."
लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करते झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश |
- देशभर से पहुंचे श्रद्धालु, गंगा पूजन के बाद लिट्टी-चोखा का प्रसाद
- रांची हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने भी सपरिवार भाग लिया महोत्सव में
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का समापन सोमवार को बक्सर स्थित विश्वामित्र आश्रम में हुआ. श्रद्धालु गंगा स्नान और पूजन के बाद नगर के विभिन्न इलाकों में लिट्टी-चोखा महोत्सव में शामिल हुए. इस अवसर पर हर घर में लिट्टी-चोखा बनाया गया, जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया गया.
लिट्टी-चोखा महोत्सव में शामिल होने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु बक्सर पहुंचे. कुछ लोग शनिवार से ही बक्सर आ गए थे, जबकि कई श्रद्धालु रविवार को ट्रेन और सड़क मार्ग से पहुंचे. किला मैदान और चरित्रवन का इलाका उत्साह और श्रद्धा के माहौल में धुएं और पकवानों की सुगंध से भर गया था.
रांची उच्च न्यायालय के न्यायाधीश डॉ. एस.एन. पाठक भी सपरिवार बक्सर पहुंचे. उन्होंने नाथ बाबा घाट पर माता गंगा का विधिवत पूजन किया और फिर किला मैदान में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण किया. डॉ. पाठक ने कहा, "यह भूमि पवित्र है जहां भगवान श्रीराम ने त्रेता युग में पंचकोसी परिक्रमा की थी. उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है उन्होंने इस धरा पर जन्म लिया है. यहां की यात्रा और लोगों से मिलकर एक अनोखी अनुभूति हो रही है."
डॉ. पाठक ने ब्रह्मपुर मंदिर के निर्माण में सहयोग पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि जल्द ही वे बक्सर के विकास के लिए कार्य योजना तैयार करेंगे. उनके साथ अनुमंडल पदाधिकारी धीरेंद्र कुमार मिश्र, रेड क्रॉस के सचिव डॉ. श्रवण कुमार तिवारी सहित अन्य गणमान्य लोग भी गंगा घाट और किला मैदान पहुंचे.
त्रेता युग से चली आ रही परम्परा :
त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ को सफल बनाने के बाद पांच ऋषियों के आश्रमों की परिक्रमा की थी और उनका आशीर्वाद लिया. पहले दिन, अहिरौली गांव में उन्होंने माता अहिल्या के हाथों बने पकवानों का आनंद लिया. दूसरे दिन नदांव में देवर्षि नारद के आश्रम पर सत्तू और मूली का प्रसाद ग्रहण किया. तीसरे दिन भभुअर में महर्षि भार्गव ऋषि ने उन्हें चूड़ा और दही खिलाया. चौथे दिन उद्यालक ऋषि के आश्रम में खिचड़ी का प्रसाद मिला. अंतिम दिन वापस महर्षि विश्वामित्र के आश्रम पहुंचने पर भगवान श्रीराम ने लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण किया. यह परंपरा आज भी निभाई जाती है.
सामाजिक संगठनों की भागीदारी :
महोत्सव में कई सामाजिक संगठनों ने भी मैत्री भोज आयोजित किए. पूरे नगर में उत्साह का माहौल था, जहां लोग प्रसाद के रूप में लिट्टी-चोखा का आनंद ले रहे थे. यह आयोजन बक्सर की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा को दर्शाता है.
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