चौसा के वीर जवान की शहादत से गांव गमगीन, तेलंगाना में ड्यूटी के दौरान हुआ दर्दनाक हादसा ..

बुधवार को जब उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ पैतृक गांव पहुंचा, तो हर आंख नम हो गई. ग्रामीणों के साथ-साथ परिजन भी अपने इस वीर सपूत को अंतिम बार देखने को उमड़ पड़े.

श्रद्धा सुमन अर्पित करते डॉ मनोज यादव
 









                                           





- तिरंगे में लिपटकर लौटा पार्थिव शरीर, राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार
- मां-बेटी के करुण-क्रंदन से गांव में पसरा मातम, ग्रामीणों ने नम आंखों से दी अंतिम विदाई

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : देश सेवा के लिए समर्पित चौसा के सीआरपीएफ जवान जय शंकर चौधरी की शहादत से गांव में शोक की लहर दौड़ गई है. सोमवार को तेलंगाना में ड्यूटी के दौरान करंट लगने से उनकी मौत हो गई थी. बुधवार को जब उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ पैतृक गांव पहुंचा, तो हर आंख नम हो गई. ग्रामीणों के साथ-साथ परिजन भी अपने इस वीर सपूत को अंतिम बार देखने को उमड़ पड़े.

सीआरपीएफ की एक विशेष टीम पार्थिव शरीर को लेकर गांव पहुंची. जिसमें दो उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी और एक दर्जन जवान शामिल थे. शव के पहुंचते ही मां, पत्नी और बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया. उनकी अंतिम यात्रा चौसा बाजार से निकलकर श्मशान घाट पहुंची. जहां राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया.

उनके परिवार में पत्नी लीलावती देवी. दो बेटे दुर्गेश (16) और ऋतिक (10). बेटी स्नेहा कुमारी (14). मां और छोटे भाई श्याम सुंदर चौधरी शोकाकुल हैं. मौके पर पूर्व जिला परिषद सदस्य डॉक्टर मनोज यादव ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित किए और कहा कि जय शंकर की शहादत गांव के युवाओं के लिए प्रेरणा बनी रहेगी.

इसके पूर्व जवान के पार्थिव शरीर के गांव पहुंचते ही ‘जय शंकर अमर रहें’ के नारों से वातावरण गूंज उठा. ग्रामीणों ने पुष्प अर्पित कर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी. उनकी अंतिम यात्रा में सैकड़ों ग्रामीणों के अलावा समाजसेवी, स्थानीय जनप्रतिनिधि और सीआरपीएफ के जवान भी शामिल हुए. सभी की जुबान पर एक ही बात थी – “गांव का बेटा चला गया, लेकिन उसकी शहादत को कभी नहीं भूला जाएगा.”

जय शंकर चौधरी ने 2006 में सीआरपीएफ की सेवा ज्वाइन की थी. वे पिछले ढाई वर्षों से तेलंगाना में तैनात थे. वे अपने कर्तव्यों के प्रति बेहद निष्ठावान और ईमानदार थे. हादसे के बाद उनका शव हैदराबाद से पटना एयरपोर्ट लाया गया और वहां से सड़क मार्ग से चौसा पहुंचाया गया.

उनके पिता रामनाथ चौधरी की पूर्व में ही मृत्यु हो चुकी थी. घर की सारी जिम्मेदारी जय शंकर के कंधों पर थी. उन्होंने न केवल अपने परिवार को संभाला बल्कि पूरे गांव में अपनी सादगी और सेवाभाव के लिए जाने जाते थे. उनके निधन से न केवल परिवार बल्कि पूरा गांव दुखी है.









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