चौसा में कोयला डस्ट का कहर: ग्रामीणों का फूटा गुस्सा, रेल यार्ड में लोडिंग-अनलोडिंग ठप ..

उठती धूल ने खिलाफतपुर, नारायणपुर, अखौरीपुर गोला, कनक नारायणपुर और बनारपुर सहित आसपास के कई गांवों के लोगों की जिंदगी अस्त-व्यस्त कर दी है. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक कोयला डस्ट से राहत के लिए मजबूत व्यवस्था नहीं होती, उनका आंदोलन जारी रहेगा.






                                         





  • लगातार उड़ती काली धूल से गांवों में सांस लेना तक मुश्किल, घर–खेत सब प्रभावित
  • स्थानीयों ने चेताया — समाधान के बिना दोबारा काम शुरू नहीं होने देंगे

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : जिले के चौसा में कोयला डंप यार्ड के पास रहने वाले ग्रामीणों का धैर्य सोमवार को टूट गया. पिछले साढ़े तीन महीने से खुली हवा में कोयला डंपिंग और लोडिंग-अनलोडिंग के कारण उठ रही काली धूल से परेशान सैकड़ों लोग अचानक रेल यार्ड पहुंच गए और वहां चल रही पूरी गतिविधि को रोक दिया. ग्रामीणों का कहना है कि लगातार उड़ती कोयला डस्ट ने जीवन को असहनीय बना दिया है — घरों में खाना बनाना मुश्किल, कपड़े सुखाने पर राख की मोटी परत जम जाती है, खेत और बगीचे नुकसान में हैं, बच्चों और बुजुर्गों को सांस लेने में गंभीर दिक्कत हो रही है. लोगों का कहना है कि अब धूल महज असुविधा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है.

प्रदर्शन की सूचना फैलते ही थर्मल पावर प्लांट के सुरक्षा कर्मी और अधिकारी मौके पर पहुंचे. प्रगति इंडियंस रोड लाइन के इंचार्ज रवि कांत मिश्रा ने बताया कि पहले छोटे टैंकर से पानी का छिड़काव कराया जाता था, लेकिन इसका असर नगण्य था. अब बड़े टैंकर की व्यवस्था की गई है और नियमित स्प्रिंकलिंग से डस्ट को नियंत्रित करने की बात कही गई है. अधिकारी ग्रामीणों को शांत करवाने में जुटे हैं, लेकिन प्रदर्शनकारी किसी ठोस समाधान की मांग पर अड़े हैं. ग्रामीणों की साफ चेतावनी है कि परिस्थिति सुधरे बिना कोयला लोडिंग-अनलोडिंग नहीं होने दिया जाएगा.

गौरतलब है कि चौसा में एसजेवीएन द्वारा 1,320 मेगावॉट क्षमता वाला जीरो प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन तकनीक आधारित थर्मल पावर प्रोजेक्ट विकसित किया जा रहा है. इसके लिए कोयला हजारीबाग से ट्रेन के जरिए चौसा यार्ड तक लाया जाता है और फिर ट्रकों से प्लांट तक भेजा जाता है. इसी प्रक्रिया के दौरान उठती धूल ने खिलाफतपुर, नारायणपुर, अखौरीपुर गोला, कनक नारायणपुर और बनारपुर सहित आसपास के कई गांवों के लोगों की जिंदगी अस्त-व्यस्त कर दी है. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक कोयला डस्ट से राहत के लिए मजबूत व्यवस्था नहीं होती, उनका आंदोलन जारी रहेगा.










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