लेखक इसे एक सामान्य बयान नहीं, बल्कि बिहार की नई दिशा की स्पष्ट शुरुआत मानते हैं. उस दौर में बिहार को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निराशा का माहौल था. कई विशेषज्ञों का मानना था कि बिहार विकास की राह पर आगे नहीं बढ़ सकता.
- लेखक ने बदलाव के दौर और सुशासन मॉडल का किया विस्तृत विश्लेषण
- 10वीं बार शपथ से पहले पुस्तक ने बढ़ाई राजनीतिक हलचल
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : जिले के डुमरांव निवासी लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव की नई पुस्तक ‘विकास पुरुष’ इन दिनों राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है. पुस्तक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व, कार्यशैली और बिहार के बदलाव की प्रक्रिया को विस्तार से दर्ज किया गया है. खास बात यह है कि यह पुस्तक ऐसे समय प्रकाशित हुई है जब नीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं, जिससे यह और भी अधिक प्रासंगिक और चर्चित हो गई है.
लेखक अपनी पुस्तक में याद दिलाते हैं कि 24 नवंबर, 2005 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए नीतीश कुमार ने कहा था— “हम एक छोटी लकीर के समानांतर बड़ी लकीर खींचेंगे.” लेखक इसे एक सामान्य बयान नहीं, बल्कि बिहार की नई दिशा की स्पष्ट शुरुआत मानते हैं. उस दौर में बिहार को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निराशा का माहौल था. कई विशेषज्ञों का मानना था कि बिहार विकास की राह पर आगे नहीं बढ़ सकता.
‘विकास पुरुष’ में विस्तार से बताया गया है कि किस प्रकार नीतीश कुमार ने ‘न्याय के साथ विकास’ को अपना केंद्रीय लक्ष्य बनाया. सुशासन को मजबूत करना, कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करना और सरकारी ऑफिसों में जवाबदेही बढ़ाना उनके शुरुआती कदमों में शामिल रहा. लेखक लिखते हैं कि विकास के पैमानों पर बिहार काफी पिछड़ा था और राज्य की छवि देशभर में कमजोर स्थिति में थी.
पुस्तक में यह भी उल्लेख है कि नीतीश कुमार ने समझ लिया था कि बिना शांति और पारदर्शिता के किसी भी विकास मॉडल को सफल नहीं बनाया जा सकता. इसलिए उन्होंने निरंतरता और कठोर परिश्रम को शासनशैली का आधार बनाया. इसका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे राज्य में दिखाई देने लगा. सरकारी कार्यालयों से लेकर गांवों और कस्बों तक नई कार्यसंस्कृति, नई सोच और नई ऊर्जा का प्रसार हुआ.
लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव की यह पुस्तक न केवल नीतीश कुमार के राजनीतिक सफर को रेखांकित करती है, बल्कि बिहार के सामाजिक बदलाव और विकास यात्रा का दस्तावेज भी बनकर उभरती है. इसी कारण यह पुस्तक आम जनता, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक हलकों में खास चर्चा का विषय बनी हुई है.






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