स्मृति शेष ... कलम से क्रांति और सड़क पर उतर वंचितों की आवाज़ बनते थे कुमार नयन : के.के.ओझा

उनकी जन सरोकारों वाली जीवंत पत्रकारिता और लेखन वाकई अद्वितीय एवं बेमिसाल है. वे ता जीवन टायर का चप्पल पहनकर फांकाकशी में लोगों के लिए लड़ते-भिड़ते रहे और जीवन संभवतः बिना चेक काटे और बैंक बैलेंस के ही गुज़र गया.
अंतिम यात्रा पर निकले कुमार नयन को श्रद्धा सुमन अर्पित करते अनुमंडल पदाधिकारी कृष्ण कुमार उपाध्याय

 





- कुमार नयन की स्मृतियों को साझा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार के. के. ओझा
- सत्ता से सीधा संघर्ष करने की हिम्मत के साथ जीवन भर वंचितों की आवाज बने रहे कुमार नयन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: "कुमार नयन 1986 में नवभारत टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया के बक्सर स्थित सवांददाता रहे हैं और अपनी लेखनी से जाने जाते रहे है. बक्सर में ऐसे पत्रकार अब नहीं रहे जो सत्ता के केन्द्रों पर खुलेआम हमला बोलते हो. उस समय बक्सर में डी.एस.पी. और एस.डी.ओ. ही वरिष्ठ अधिकारी होते थे और उनके खिलाफ नुक्कड़ सभा के माध्यम से विरोध करते थे और भगतसिंह चौक यानि कि मुनीब चौक पर लाउडस्पीकर लगाकर अधिकारियों को होश में आने का भाषण भी दिया करते थे. जनवादी कोई मंच हो सरकार के खिलाफ शोले छोड़ते रहते थे.

एकबार उन्होंने ज्योति प्रकाश (मंजू प्रकाश के पिता) के साथ बक्सर रेलवे स्टेशन पर अघोषित स्टैंड ठीकेदारी के खिलाफ भारी विरोध सभा में पुलिस के दलालों को ज़िंदा सबक सिखाने की धमकी दी थी और लाल झंडे के नीचे सभी रिक्शा चालकों से स्टेशन पर पार्किंग शुल्क नहीं देने और मांगने वालों को पीटने का आह्वान किया था. उस समय बक्सर स्टेशन का स्टैंड का ठीका नहीं होता था बस रेल पुलिस के दलाल रिक्शावालों से पैसा उगाहते थे.

1989 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी प्रो. के.के.तिवारी (जो मंत्री भी थे) के पक्ष में बूथ कैप्चरिंग करने वाले का नाम भी अखबार में प्रकाशित किये थे. इटाढ़ी थाना के नारायणपुर गांव में पुलिस फायरिंग में दो लोग मारे गए थे. किसी अखबार में यह खबर नहीं आई, नयन जी ने टाइम्स ऑफ इंडिया में वह ख़बर प्रकाशित कराकर उसे राष्ट्रीय स्तर का खबर बना दिया. अगले दिन पटना से कई पत्रकार उस खबर को कवर करने आ गए.

उनकी जन सरोकारों वाली जीवंत पत्रकारिता और लेखन वाकई अद्वितीय एवं बेमिसाल है. वे ता जीवन टायर का चप्पल पहनकर फांकाकशी में लोगों के लिए लड़ते-भिड़ते रहे और जीवन संभवतः बिना चेक काटे और बैंक बैलेंस के ही गुज़र गया."

उनकी बेलौस जीवन स्मृतियों को सादर नमन!












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