सबके लिए समान हैं सच्चिदानंद स्वरूप भगवान : स्वामी राघवाचार्य

जीवन मे संस्कारो का महत्व है और सभी सनातनियों को इन संस्कारों की रक्षा करनी चाहिए. अनेक जन्मों के बाद जब भगवान की विशेष कृपा होती है तभी मानव जन्म होता है. मानव का जन्म मिलने के बाद उसके भीतर पशुता के सारे गुण से समाप्त हो जाए. इसलिए जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कारों का वर्णन हमारे धर्मग्रंथों में है.



- सिय-पिय मिलन महोत्सव में  राम रस पान करा रहे अवधपुरी से पहुंचे कथा वाचक
- सोलह संस्कारों से श्रोताओं को कराया अवगत

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : सिय-पिय मिलन महोत्सव में अवधपुरी से पधारे श्रीराघवाचार्य महाराज के श्रीमुख से श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण कथा का आयोजन किया गया. जिसमें महाराज जी ने कहा कि परमात्मा रस रूप है. वेदों में कहा है कि वो परमात्मा जो रसरूप है वो सैंधव रस (सेंधा नमक) के समान है. जिस प्रकार सेंघा नमक में आर-पार दिखाई देता है और अंदर बाहर एक स्वरूप का होता है उसी प्रकार से सच्चिदानंद भगवान भी सभी भक्तों के लिए समान है. इसलिए सेंघा नमक को संतो ने रामरस भी कहा है. बुद्धिमान व्यक्ति प्रातः काल का समय जुआ प्रसंग में लगाओ क्योकि जुआ का खेल महाभारत प्रसंग का बोधक है. मध्याह्न काल मे स्त्री प्रसंग रामायण का घोतक है और रात्रिकाल  में चोर प्रसंग यानी श्रीकृष्ण भगवान के भागवत का अध्ययन करना चाहिये. 




उन्होंने कहा कि ज्ञान को ग्रहण करने वाले की पात्रता होनी चाहिए तभी गुरु का दिया ज्ञान सार्थक हो सकेगा. जब आचार्य के अंदर जीव के कल्याण की करुणा निहित होगी तभी तो जगत का कल्याण हो सकेगा. जन्म के पश्चात जो प्रथम संस्कार होता है उसे जातकर्म संस्कार कहते है वेदों में 16 संस्कारों का वर्णन है लेकिन वर्तमान में विडंबना ये है कि लोग अपने संस्कारो को भूलते जा रहे है. जन्म के पश्चात जो प्रथम संस्कार होता है, उसे जातकर्म संस्कार कहते हैं. वेदों में 16 संस्कारों का वर्णन है लेकिन वर्तमान में विडंबना ये है कि लोग अपने संस्कारो को भूलते जा रहे है. संस्कार हमारी कमियों को दूर करते हैं और हमारी विशेषताओं को उजागर करते हैं. इसलिए जीवन मे संस्कारो का महत्व है और सभी सनातनियों को इन संस्कारों की रक्षा करनी चाहिए. अनेक जन्मों के बाद जब भगवान की विशेष कृपा होती है तभी मानव जन्म होता है. मानव का जन्म मिलने के बाद उसके भीतर पशुता के सारे गुण से समाप्त हो जाए. इसलिए जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कारों का वर्णन हमारे धर्मग्रंथों में है.





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