154 वीं वर्षगांठ पर रंगमंच से समाज सुधार की संभावनाओं पर चर्चा ..

कहा कि भारत में आजकल जो रंगमंच की दशा है वह संतोषजनक नहीं है. भारत की आजादी में भारतीय रंगमंच का बहुत बड़ा हाथ है. आदि काल से रंगमंच समाजिक कुरीतियो को दूर करने मे महत्वपूर्ण भूमिका रहा है. आजादी के बाद इसमें एक भटकाव आ गया. 










- डाब जिलाध्यक्ष ने कहा, रंगमंच समाजिक कुरितियो को दूर करने सशक्त माध्यम
- रंगमंच की दशा व दिशा पर हुई चर्चा, सम्मानित किए गए रंगकर्मी 

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : डिस्ट्रिक्ट आर्टिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ बक्सर "डाब"  के तत्वाधान में स्थानीय रेडक्रॉस भवन में हिंदी रंगमंच की 154 वीं वर्षगांठ हर्षोल्लास मनाई गई, जिसके तहत "रंगमंच दशा व दिशा" विषय पर सेमिनार का आयोजन सह सम्मान समारोह रखा गया था. इस दौरान रंगकर्म के क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान के लिए अशोक पांडेय को शाल, स्मृति चिह्न व प्रशस्तिपत्र से सम्मानित किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता व संचालन रंगकर्मी सुरेश संगम ने की. इसके पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन  इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष प्रख्यात सर्जन डॉ महेंद्र प्रसाद व रेडक्रास सचिव डॉ श्रवण तिवारी ने संयुक्त रूप से की. 


डाब के अध्यक्ष सुरेश संगम ने सेमिनार  को संबोधित करते हुए बताया कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के दोस्त ईश्वर नारायण सिंह के प्रयास से हिंदी में प्रथम नाट्य प्रस्तुति "जानकी मंगल" पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी द्वारा बनारस थिएटर में 3 अप्रैल 1868 को संपन्न हुई थी. इसके बाद एक सिलसिला चल निकला, जिसमें रणधीर, प्रेम मोहनी एवं सत्य हरिशचंद्र जैसे नाटकों का मंचन हुआ. हिंदी के इस प्रथम नाट्य मंचन के साथ 3 अप्रैल को हिंदी रंगमंच दिवस के रूप में अमृतलाल नागर ने इसे लोकप्रिय करने एवं मनाने पर जोर दिया, तब से यह परंपरा चल पड़ी. 


उन्होंने आगे कहा कि भारत में आजकल जो रंगमंच की दशा है वह संतोषजनक नहीं है. भारत की आजादी में भारतीय रंगमंच का बहुत बड़ा हाथ है. आदि काल से रंगमंच समाजिक कुरीतियो को दूर करने मे महत्वपूर्ण भूमिका रहा है. आजादी के बाद इसमें एक भटकाव आ गया. वर्ष 1950 से अब तक भारतीय रंगमंच की दशा गिरती गई. इसका मुख्य कारण भारतीय फिल्म, टेलीविजन रहे. आजकल तो व्हाट्सएप और फेसबुक के आकर्षण ने भारतीय रंगमंच को ध्वस्त करना शुरू कर दिया है. 


उद्घाटनकर्ता डॉ महेंद्र प्रसाद ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि नाटक के लिए श्रद्धा का होना बहुत ही जरूरी है. उन्होंने कहा कि अभिनय एक ऐसी चीज है जो आत्मा से निकलती है. अशोक पांडेय ने कहा कि रंगमंच एक माध्यम है. कलाकार भाव एवं संवादों से समाज का नया आयाम दे सकता है. हमें सामाजिक विकृतियों को दूर करने का प्रयास करना होगा. 

इस अवसर पर विभिन्न विधाओं से जुड़े कलाकारो व साहित्यकार ने भी अपने उदगार व्यक्त किए. धन्यवाद ज्ञापन सचिव अभिषेक जायसवाल, रवि वर्मा व मनीष मिश्रा ने संयुक्त रूप से की. सेमिनार मे शामिल व्यक्तियों में मुख्य रूप से महासचिव हरिशंकर गुप्ता, रामस्वरूप अग्रवाल, डॉ ओमप्रकाश केशरी पवननदन, डॉ ए के सिह, संजय सिह राजनेता, बंटी शाही, प्रदीप जायसवाल, गायक पंकज सिंह, प्रशान्त कुमार, धर्मेन्द्र, फिरोज आलम, फारूख, ख्वाजा अहमद, मनोज चौबे, निर्मल सिंह, बिपिन कुमार, आदि प्रमुख थे.
















 














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