श्रीहरि का स्मरण करने से ही नष्ट हो जाती हैं विपत्तियां : आचार्य इंद्रेश

भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन के विषाद के हरण के लिए पहले 10 अध्याय सुनाएं तत्पश्चात श्री ठाकुर जी ने उनसे पूछा कि अर्जुन क्या तुम्हारा मोह नष्ट हुआ? अर्जुन ने उत्तर दिया हे प्रभु हे जगत पालक मेरा मोह चला गया तब ठाकुर जी कहते हैं कि, गई हुई वस्तु पुनः वापस आ सकती है.






- नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन स्मरण भक्ति की हुई व्याख्या
- आचार्य ने कहा, भगवत गीता का सार है स्मरण भक्ति

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : महोत्सव के दौरान चल रहे नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिवस पर कथा व्यास श्री इंद्रेश जी महाराज ने आज नवधा भक्ति के अंतर्गत भक्ति के तृतीय स्वरूप स्मरण भक्ति की भावपूर्ण व्याख्या कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. इससे पूर्व श्री महाराज जी ने भक्ति के दो स्वरूपों श्रवण भक्ति एवं कीर्तन भक्ति की मधुर व्याख्या की थी. श्री महाराज जी ने स्मरण भक्ति के महत्व की व्याख्या करते हुए कहां की श्रीहरि का स्मरण करने मात्र से ही सारी विपत्तियां नष्ट हो जाती है और जीव का कल्याण हो जाता है. महाराज जी ने कहा कि शास्त्र आज्ञा करते हैं किसी भी विषय को पहले सुनो उसके बाद उसको पढ़ो और फिर विचार करो तभी विषय हृद्यांगित होता है. ठीक वैसे ही ठाकुर जी की कथा पहले श्रवण करें तत्पश्चात उसका गायन और फिर भक्ति के तीसरे स्वरूप के भाव से सुनी गई भक्ति कथा का स्मरण करें. 


उन्होंने कहा की गीता का सार ही स्मरण भक्ति है. भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन के विषाद के हरण के लिए पहले 10 अध्याय सुनाएं तत्पश्चात श्री ठाकुर जी ने उनसे पूछा कि अर्जुन क्या तुम्हारा मोह नष्ट हुआ? अर्जुन ने उत्तर दिया हे प्रभु हे जगत पालक मेरा मोह चला गया तब ठाकुर जी कहते हैं कि, गई हुई वस्तु पुनः वापस आ सकती है इसलिए अब और सुनो. श्री ठाकुर जी अर्जुन को गीता के अंतिम आठ अध्याय सुनाते हैं. और पुनः प्रश्न करते हैं कि अर्जुन तुम्हारा मोह चला गया या नहीं? अर्जुन प्रतिउत्तर करते हैं हे प्रभु मेरा मोह अब नष्ट हो गया. आपने जो सुनाया उन सब की स्मृति मेरे अंदर विद्यमान हो गई है. भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अब कुछ भी सुनाना शेष नहीं है. हमारे द्वारा सुनाई गई कथा का स्मरण ही तुम्हें युद्ध करने की शक्ति देगी और युद्ध में विजय श्री हासिल कराएगी. 

आगे श्री महाराज जी ने कहा की गुरुजन जो कहते हैं, संत वैष्णव जो सुनाते हैं उन्हें रटने अथवा याद करने से ज्यादा उसका स्मरण करते रहने मात्र से कल्याण होता है. यही स्मरण भक्ति है. स्मरण भक्ति के आचार्य के रूप में श्री प्रहलाद जी प्रस्थापित है. जिन्होंने अपने ही परिवार के द्वारा उत्पन्न की गई विषम परिस्थितियों के बावजूद हरि नाम का स्मरण नहीं छोड़ा और अपने साथ साथ सब का कल्याण कराया. श्री महाराज जी ने कहा कि कलयुग में स्मरण भक्ति की आचार्या के रूप में श्री मीराबाई प्रस्थापित है. उन्होंने कहा नवधा भक्ति अर्थात भक्ति के नौ स्वरूपों में से किसी भी स्वरूप के माध्यम से श्री हरि की कृपा प्राप्त की जा सकती है. स्मरण भक्ति भी उन्हीं स्वरूपों में से एक है. भक्ति के ऐसे स्वरूप स्मरण भक्ति को बारंबार प्रणाम है.











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